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उपासकदशांग सानुवाद
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॥६८॥
| मुइङ्गाकारोवमे से खन्धे, पुरवरकवाडोवमे से वच्छे, कोट्ठियासंठाणसंठिया दोवि तस्स बाहा, निसापाहाण- कामदेसंठाणसंठिया दोवि तस्स अग्गहत्था, निसालोढसंठाणसंठियाओ हत्थेसु अंगुलीओ, सिप्पिपुडगसंठिया से (2) वाध्ययन नक्खा, पहावियपसेवओ व्व उरंसि लम्बन्ति दोऽवि तस्स थणया, पोहें अयकोट्टओ व्व वह, पाणकलन्दमृदंगना आकार जेवा अने तेनी छाती नगरना कपाट-कमाड जेवी हती. तेना बे हाथ कोष्ठिका-कोठीना आकार जेवा, ते हाथना अग्र ॥६॥ भाग निशापाषाण-दाळ वाटवानी शिला जेवा, आंगळीओ निशालोढ-दाळ वाटवाना पत्थर जेवी अने तेना नखो छीपना दलना जेवी आकृतिवाळा हता. तेना बन्ने स्तनो नापितनी कोथळीनी पेठे छातीनी उपर लटकता हता. तेनुं पेट लोढानी कोठी जेवू वर्तुल-गोळ दाढियाओ' एवं पाठान्तर छे. पटले घोडाना पूछडाना जेवी परुष-कर्कशस्पर्शवाळी अने उभा रोम-केशवाळी परन्तु तीरछी नमेली नहि एवी दंष्ट्रिका-दाढी-नीचेना होठना बन्ने बाजुना वाळ छे. तेना 'ओष्ठौं' बन्ने होठ ऊँटना जेवा लांबा छे. 'उट्टा से घोडगस्स जहा दोवि लम्बमाणा' ए पाठान्तर छे.. एटले तेना बत्ने होठ घोडाना जेवा लांबा छे. तथा 'फालसरिसा लांबा होवाथी फाल-लोढानी कोशना जेवा तेना दांत छे. 'जिहा यथा शुर्पकर्तरमेव जीभ सूपडाना कर्तर-टुकडाना जेवी छे, पण अन्यना जेवी नथी, तेमज विकृत अने बीभत्स दर्शनवाळी छे. 'हिंगुलुयधाउकन्दरबिलं व तस्स वयणं' ए, अन्य पाठान्तर छे. एटले हिंगळो रूप धातु-खनिज द्रव्य जेमा छे पचुकन्दर-गुफारूप बिलना जेवू तेनुं वदन-मुख छे. 'हलकुद्दालं' हळना उपरनो भाग, तेना आकार जेवी अत्यन्त वक्र अने लांबी 'से' तेनी 'हणुया' बे दाढो छे. ते पिशाचनी गल्लकडिलं गल्ल-गालरूपी कडिल्ल-मण्डकादिने रांधवानुं पात्र, कडाई खडु-खाडाना जेवी छे. एटले तेनो मध्य भाग नीचाणवाळो अने फुट-पहोळो छे. अहों समान धर्म वडे 'कडिल' प उपमान कडेलुं छे. वळी ते वर्ण थी कपिल-पीळी अने स्पर्शथी 'फरुसं' कठोर अने 'महलं' मोटी छे. तेना स्कन्ध-खभा मृदंगना आकारनी उपमा-सादृश्य जेनु छे एवा