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________________ उपासक- सह. वंदित्ता नमंसित्ता एवं बयासी-सद्दहामि णं भन्ते ! निग्गन्धं पावयणं, जाव से जहेयं तुन्भे वयह, जहा|७ सद्दालपुत्र दशांगणं देवाणुप्पियाणं अन्तिए बहवे उग्गा भोगा जाव पव्वइया नो खलु अहं तहा संचाएमि देवाणुप्पियाणं अ-14 अध्ययन सानुवाद न्तिए मुण्डा भवित्ता, जाव अहं णं देवाणुप्पियाणं अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्वावइयं दुवालसविहं गि॥१४५॥ हिधम्म पडिवजिस्सामि' । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिवन्धं करेह । तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया स-| ॥१४५॥ मणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तिए पञ्चाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजइ, पडिवजित्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, वंदित्तानमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया । तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ पोलासपुराओ न यराओ सहस्सम्बवणाओ पडिनिग्गच्छइ, पडिनिग्गच्छित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ।। नमस्कार करे छे. वंदन नमस्कार करीने तेणे आप्रमाणे कयु-'हे भगवन् ! हुं निर्ग्रन्थ प्रवचननी श्रद्धा करूं छु के यावत् जे तमे कहो छो. जे प्रकारे देवानुप्रिय एवा आपनी पासे घणा उग्रकुळना, भोग कुळना क्षत्रिओए यावत् प्रव्रज्या ग्रहण करी छे ते प्रमाणे हुँ देवानुप्रिय एवा आपनी पासे मुंड थइने प्रव्रज्या ग्रहण करवा समर्थ नथी, परन्तु हुं देवानुप्रिय एवा आपनी पासे पांच अणुव्रत अने सात शिक्षाव्रत रूप बार प्रकारना गृहस्थ धर्मने अंगीकार करीश. (भगवंते कड्यु-)हे देवानुप्रिय ! तमने सुख थाय तेम करो, परन्तु प्रतिबन्ध न करो. त्यार पछी ते अग्निमित्रा भार्या श्रमण भगवान् महावीरनी पासे पांच अणुव्रत अने सात शिक्षा व्रत रूप बार प्रकारना गृहस्थ धर्मने स्वीकारे छे. स्वीकारीने श्रमण भगवंत महावीरने वंदन अने नमस्कार करे छे. वंदन अने नमस्कार करीने तेज
SR No.600279
Book TitleUpasakdashanga Sutra
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages184
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size15 MB
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