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श्रीदे० चै| त्यश्रीधर्म संघाचार
|हारकर
॥४९॥
मं सत्तुं सत्थसत्थिया पत्ता । कहइ वणी तो भो इह जिमिज तं एज जाव तडं ॥ २८ ॥ तो तबहणविलग्गो आगच्छंतो कयाइ प्रदक्षिणायां स निसीहे । सुत्तविउद्धो पिच्छद सहसा पुंनिमनिसारयणं ॥२९॥ तं धवलियदिसिवलयं पिच्छइय जा चिंतए किमपि । अह एरि| समत्यि नवत्ति सरइ ता सो मणिं निययं ॥ ३०॥ तं काउ करे जा नियइ को णु पवरोत्ति विम्हिओ दोवि । सहसा दुल्लियवहणे | संबंध ता पन्भट्ठो कराउ मणी ॥३१॥ सो पडिओ जलहिजले तं नाउ इमो निवडिओ वहणे । हा हा मुद्दो मुट्ठोति पुक्करंतो य विलबंतो ॥३२॥ अह आसासिय पुट्ठो पवहणवइणा सो किमेयं भो!। तो अंमणि मुयंतो साहइ सबंपि वुत्तंत॥३३।। जंपद य बहुकि| लेसेहिं अजियं देव ! मे हयासेण । हारियमज पमाया अप्पावसु पसि तं रयणं ॥३४॥ भणइ वणी किह मुद्धय ! लन्भइ भट्ठो | मणी इह अगाहे ? । जत्थ फुरेइ न बुद्धी न य विहववलं न पोरिस्सं ॥३५॥ ता सो दुमगो दुहिओ जह जाओ तं मणिं विणा | TA | सुइरं । तह होइ जिओवि दुही पमायओ हारिय नरत्तं ॥३६॥ अवि देवाइपसाया तं लहिअ कयाइ पुण स हुज सुही । न उण | जिओवि पमत्तो नरभवमभहियसुकयलन्भं ।। ३७ ।। जह. पुण अचणसहिओ सहलो चिंतामणी. हवह इहयं । तह नरभवोऽवि | अञ्चणनिरयस्स नरस्स सुहहेऊ ॥ ३८ ॥ तो अच्चणं विहेयं सया जिणाणं जहिच्छियफलाणं । दवणभावक्षणमेया पुण होइ तं
दुविहं ॥३९॥ अथ महानिशीथोक्तं-दबच्चणमिह सावयसील सक्कारपूयदाणाई । भावच्चणं चरिताणुट्ठाणं उग्गतवचरणं ॥४०॥ | तथा-भावच्चणमुग्गविहारया य दवच्चणं तु जिणपूना । पढमा जईण दुन्निवि गिहीण पढमच्चिय पसत्था ॥४१॥ कंचणमणिसोवाणं
थंभसहस्ससिए सुवण्णतले । जो कारिज जिणहरे तोऽवि तवसंजमो अणंतगुणो ॥ ४२ ।। जओ-तवसंजमेण बहुभवसमन्जि | पावकम्ममललेवं । निद्धोविऊण अइरा अणंतसोखं वए मुक्खं ॥४३॥ काउंपि जिणाययणेहिं मंडिअं सबमेइणीवर्ट । दाणाइचउ- ॥४९॥
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