SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ब्रह्मदत्त कथा श्रीदें चैत्यश्री धर्मः संघाचारविधौ ॥३६॥ द्दिजए उदिन्ने य। सुट्ठवि चित्तजयपरो कहं अकजे न वहिहिइ ॥९५॥ किंच-विभूसा इत्थिसंसग्गी,पणीयं सभोयणं । नर| स्सऽवगवेसिस्स, विसं तालउडं जहा ।। ९६ ॥ ता सबहावि धन्नाण चेव रसचागवासणा होइ । जिचे इमंमि रसणिदियपि अबलं कियं चेव ।। ९७॥ अबले य तंमि पायं सवेसि इंदंदियाण अवलचं । दत्वं तप्पचइयमेव जंतेसि सामत्थं ॥९८॥ किंच| अक्खाण रसणी कंमाण मोहणी तह वयाण बंभवयं। गुत्तीण य मणगुती चउरोऽवि दुहेण जिष्पंति ।।१९।।" ता निश्चला हविजह पत्थुयसद्धम्मकम्मविसयंमि । तेऽवि तहत्ति पडिच्छंति सीसवीसंतकरकमला ॥१००॥ ता सूरदेवसिहो गिहिधम्म गहिय नमिय ते | मुणिणो। पचो नियंमि गेहे अन्नत्थ य विहरिया गुरुणो ॥१०१॥ किच्चिरकालं बाहिं विहारय पत्ता तहिं पुणो गुरुणो। तत्थेगेणं | मुणिणा पडिवन्नं अणसणं विहिणा ॥१०२॥ तं नंतुं गच्छन्तं राईसरपमुहबहुजणं दटुं । जिणपवयणपडिकूलो पुरोहिओ भणइ | समरनिवं ॥१०३॥ देव! महंतमजुत्तं पारद्धं इत्थ सेयभिक्खूहि । राजा-नणु पयइउवसमीहिं इमेहिं किं कीग्इ अजुत्तं ?॥१०॥ पुरो-एगो मुणी अकाले सन्नासेणं करेइ इह कालं। राजा-तं निस्सेयसन्भुदयकारणं गिजए सत्थे॥१०५|| तथाहि-द्वावेव पुरुषो लोके, चंद्रमण्डलमेदिनौ । परिबाड्योगयुक्तश्च, सूरश्चाभिमुखो हतः॥१०६॥ ता इह किंपि अजुत्तं न अस्थि पुरो-नणु द? किंपि उवघायं । मह वयणं मनिस्सह इय भणिय ठिो स मोषेण ॥१०७॥ अह निवपुत्तो सुत्तो डको रयणीइ कसिणसप्पेण ।। मुक्को नरिंदविंदारएहि नणु कालडक्कुत्ति ।। १०८ ॥ गुरुसोयभारविहुरो राया वुत्तो पुरोहिएणेवं । तं देव ! अजुत्तमिणं जं वो कहियं मए आसि ॥१०९॥ जइ पुण अजवि एए निद्धाडसि समणगे सदेसाओ।ता तुह सुयस्स रक्खा काविहु कइयावि किर होइ ॥११०॥ तं सोउं मृढेणं नरवाणा तलवरो समाइट्ठो । लहु गंतु इमे समणे नीहारसु मज्झ देसाओ ॥१११॥ जमपुरिससरिस ॥३६४॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy