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________________ Ramunailimitha NA कथा श्रीदें निस्सो धणं धणी रजं, राया चकिचमिच्छइ । एवं अच्छिन्नवित्तिच्छा, खयं यचंति बालिसा ।।७८||ता संतोससमंतेण लोहदोसं लहं चैत्य श्री- | विणिग्गहिउँ । मित्त! चइत्तु पमायं समुञ्जओहोसु धम्मंमि ।।७१।। पूयसु जिगपडिमाओ वंदसु देवेऽहिगारपरिसुद्धे । स्नो दक्खिधर्म संघा-VA | नेणं एवंति पवजए सोऽवि ॥८०॥ विहिमूद्धधम्मरसिओ संनासं काउ सिद्धदेवनियो । अच्चुयकप्पमि गओ महाविदेहम्मि सिज्झिचारविधौ | हिइ ॥८१॥ जणलजाए रायाणुवितिओ भावणविहीइ विणा । चिइबंदणाइ धम्म जहा तहा काउ धम्मजसो ॥ ८२ ॥ मरिऊणं ॥३६३॥ | उववन्नो सोहम्मे आमिओगिलो तियसो। पलियाऊ पउमुत्तरविमाणवासिस्स देवस्स ।।८।। अणिसं आणाकारी अणुतप्पंतो पए पए सुबहुं । हा हा किमवरजंमे मए कयं असुहकम्मंति? ॥८४॥ एमाइ झूरमाणो गुत्तीसित्तब पूरिय नियाउं। तो चविउं सो जाओ | जिणदत्त ! तुहेस अंगरुहो ।।८५॥ भो भदत्त ! तुमए नरवरमित्ताणुवित्तिवसमेण । भावेण विणा विहिविरहिओ पुरा जंकओ धम्मो ॥८६॥ सो निरणुबंधयाए मुहलेसं दाउ किंपि अमरेसु । इण्डि पुण तुभ दोगचदाणेण परिणओ एवं ।। ८७॥ यतः| "विहियपि भावरहियं कपि ईसि मुहं विहिय पुग्नं । जणइ दुरंतमवस्सं भववित्यारं जओ भणियं ।। ८८ ॥ कायकिरियाइजोगा| खविया मंडुक्कचुनतुल्लति । ते चेव भावणाए विद्वतच्छारतुल्लति॥ ८९ ।। किंच-विहिसुद्धमणुट्ठाणं सुभावणाभावियं भवीण | खणा। निहणेइ कम्मजालं सिद्धस्स व सूरदेवस्स ॥१०॥" को एसो? इय पुट्टो जिणदत्तसुएण जंपए नाणी । आसि कुणालानय| रीइ सूरदेवुत्ति पुरसिट्ठी ॥९१।। वसुमित्तमूरिपासे बाहुमुबाहुत्ति भायरो दिक्खं । विगइअभिग्गहजुत्तं गिण्हते नियइ स कयावि | ॥९२॥ अह ते मुणिणो गुरुणा पसंसिया सयलसंघपचक्खं । वच्छा ! तुम्मे धन्ना जेहिं को विगइनियमोऽयं ।।९३॥ यतः-"विगई विगईभीओ विगइगयं जो उ भुंजए साहू । विगई विगयसहावा विगई विगयं बला नेइ ॥९४॥ वियई पररिणयधम्मो मोहो जमु- ॥३६३॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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