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________________ ब्रह्मदत्त कथा श्रीदें एस धणनासो ? ॥९॥ इन्भो तं पइ जंपइ संकसु मा पच्छ! तुममिममजुत्तं । उदयक्खयाइभावा कस्सवि जायंति कइयावि ॥१०॥ चैत्यश्री- यदागमः-"उदयखयखओवसमोवसमाई जं च कम्मणो भणिया। दवं सित्तं कालं भावं च भवं च संपप्प ॥ ११ ॥ निचाधर्म० संघा- वडियभावा तणुभवभविणो भवंति न भवंमि। ता असुहपच्चो धणक्खउत्ति इय जुञ्जई वुत्तुं ॥ १२॥ निययववसायअफलत्तणेण चारविधौ । इय निच्छएमि ताय ! इमो । मह पुव्वदुकयहेऊ दोसो इय आह पुण बंभो ॥१३॥ इन्भोऽवि आह हे वच्छ ! सच्छं नहु निच्छियं ॥३५९॥ भवे जमिह । भावियजिणवयणाणं तं कथवि वोतु नो जुत्तं ॥१४।। जइ पुण हिययचहुद्या तुह नो हट्टेइ वच्छ ! संका तो। ता एहि कंचणपुरं केवलिणं जेण पुच्छामो ॥१५॥ आमंति सुएणुत्ते ते जणयसुया तओ तहिं गंतुं । तं बुत्तंत सयलं नमिउ पुच्छंति वरनाणि ॥ १६ ॥ भणइ मुणी भो जिणदत्त! आसि इह कोसलाइ नयरीए । सिरिहरिसनिवस्स सुओ सुविस्सुओ सिद्धदेवुत्ति ॥१७॥ तस्स य चालवयंसो धम्मजसो नाम मुजससिद्विसुओ। ते कइयावि वसंते पत्ता कीलेउमुजाणे ॥१८॥ अइदाणविलासपरं तत्थ जणं दटु भणइ निवतणुओ। मित्त! कह धणियतणयव्य इह जपा दिति विभवति ॥ १९ ॥ पडिभणइ सिट्टिपुत्तो कुमार! सारमिणमेव कमलाए । दाणं भोगा य तहा अन्नह नासुचिय हविजा ॥२०॥ किंच-पायं अदिन्नपुत्वं दाणं सुरतिरिय. | नारयभवेमु । मणुयत्तेऽवि न दिजा जइ तत्तो तंपि नणु विहलं ॥२१॥ अन्नयवियोवि अल(कुलु)ग्गओऽवि समलंकिओवि रूबीवि। पुरिसो न सोहइ चिय दाणेण विणा गयंदुध ॥२२॥ किंतु सिमुत्ते सोहइ न जुब्बणे दुगमिणं सुपुरिसस्स | जणगीइ दुपाणं पिउलच्छीए य परिभोगो ॥२३ ।। अह साहइ निवपुत्तो मित्त ! तए जुत्तमेयमुल्लवियं । देसंतरे अहं खलु गमिहं विहवे समजेउं ||२|| इयरोऽवि आह एवं अहंपि काउं भणइ तो कुमरो। भो मिच! सत्तमंदिर बीसुं देसेसु गंतव्यं ।।२५|| बीए महुमासे पुण ॥३५९।।
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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