SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुणसागर कथा श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघाचारविधी ॥३५५॥ च॥१७॥ चिइवंदणं तु नेयं सुत्तत्थुवओगओ समाहीओ। अक्खलियाइगुणजुयं दंडगपंचगसमुच्चरणं ॥ १८॥ पढमो सक्कथनं इह भणिय पणिवायदंडअं अहवा । चेइयवंदणदंडों वीओ पुण होइ नायव्वो ॥१९॥ चउवीसथओ वइओ सुयनाणथओ भवे चउत्थो उ। पंचमओ सिद्धथओ दंडगपंचगमिमं होइ ॥२०॥ इय सोउ हरिसियमणो रणवीरनिवो सनंदणो धणियं । गिण्हइ गिहत्थधम्म चिइवंदणमाइवरनियमं ॥२१॥ नमिउं गुणधरगुरुं तत्तो पत्तो निवो सठाणमि । अह कीलिउ समित्तो पत्तो कुमरो कयाइ वणे ||२२|| तत्थ जुगाइजिणगिहे पविसिय मुक्कासिदंडकोदंडो। चंदिय पणदंडविही गयतियदंडं जिणवरिंदं ॥२३॥ जा निग्गच्छइ पिच्छइ अच्छरअच्छेरपिच्छणियस्वं । अंदोलियाविरूवं एगं कुमरिं वणसिरिं व ।। २४ । निद्धच्छितन्नियच्छणवरं कुमारं निएवि | अह धरणो । भणइ सहयारछायाइ इत्थ छणमेगमच्छामो ॥ २४ ॥ तत्थवि यागच्छंत नियंति रमणिदुगमुत्तराहुत्तं । आगच्छंतं च खणा ताहि समं तह वरविमाणं ॥२५॥ ओयरिय तओ एगो खयरो आरोपिउंच ते उ तहिं । रणवीरनिवगिहे जाइ रायकयउचियउवयारे ॥२६।। भणइ निव! मणिकिरीडो खयरोऽहं रयणपुर पहू मज्झ । रयणाव लित्ति धूया तदुचियवरमलहमाणस्स ॥२७॥ दिव्वन्नुणा य कहियं रणवीरसुओ मणोरमुजाणे । वंदंतो रिसहजिणं हरिही तीसे मणं स वरो॥२८॥ इय सोउ पेसिया सा इह जायं तस्स सव्वमवि भणियं । लग्गमवि अज ता दुण्डमेसि जोगो हवउ जोगो ॥२९ ।। कुमरस्स य संगयमिमं लहु कुणउ पहुत्ति सवण मूलंमि। ठाउं धरणेणुत्ते मन्नइ निवई खयरवयणं ॥३०॥ परिणयणमहे वित्ते तओ सठाणमि खेयरो पत्तो। अह कइया विनतो निवई | उजाणपालेण ॥३१॥ सिरिअमरचंदरी बहुसुरविसरेण अमरवरीव । पुजंतो संपतो इह अज मणोरमुजाणे ॥३२॥ इय सोउम|मयसिचोव्य नरवरो जाइ वनमणहेउं । नमिय मुणिदं निसुणइ इय मुणिणा देसणं विहियं ॥३३॥ "जत्थ य विसयविराओ कसाय ॥३५५॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy