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________________ श्रीदे चैत्य श्री- धर्मसंधाचारविधौ ॥२३॥ यन्धुदत्तकथा ||२२५॥ तरुणो स सुरामनो निवमायरभैगया उ सयमाणों । रायमपण सिट्टो स घेइ तो वि अहियय ।।२२६॥ तो तेण छिन्न- जीहो जाए अगसणेण भरिऊण । तं नारायण! जाओ अत्थि जवि कम्पास ने ॥२२७॥ तं सोउं मुणित्रयणं महिओ नारायणो सुसंविग्गो । गहिरपरिवायगतको गुरुमुस्ममणपरो जाओ ।। २२८ ।। मरमाणेण य गुरुणा तादग्याडिणिखगामिणीओ य । वरवेत्राओ दाउण सायर सिक्खिओ एवं ॥२२५|| धम्मनियदेहरवं मुतुं अनमि गाढवमोति। ण इमा पओजियहा हासेवि मुसं न वत्तव्यं ।।२०। जइय पमायाउ मुसं वहज तो नाहिपरिमियजलंमि । टाउणं उभुओ सहस्सं जविजइमा ।।२३१॥ विहियं विपरीयाँमेगं पिसयासण नेण नह भणियं । कल्लदिणमि असचं आरामटिएण यतहाहि ॥२३२॥ हाऊण गिहे जुबई आगया काउ देवपूयस्थी । वयगणकारणं सो वेस्गं पुडिओ ताहि ।। २३३ ।। सहमा सिट्ठो तेणं वय हेऊ इट्टवल्लहाविरहो। न | को पुयुत्तविही तु मंति ! नारायणो सोऽहं ॥२३४।। मायरसिटिगिहे चोरियाए दइयाउ अपिहियदुवारे । निसि माणुव पविट्ठो | गहिउँ कणगाइ गच्छतो ।। २३५॥ आरक्खगेहिं गहिओ खगामिनी सुमरियाधि नप्फुरिया । तं च मरिऊण भणियं न अन्नहा साहुभणियंति ।। २३६ ॥ मती भगइ वयं भो विस्सरिथं कत्थ भूमणकरंडो । स भणइ निहत्तठाणा केणवि नाऊण सो गहिओ ॥२३७॥ अह सचिवयरो मुंबइ तयं परिवायगं सरेइ तहा। ते माउलभाणिजे करंडगहरे विचिंतइ य ॥२३८।। नूणमजाणतेहिं तेहिं | स लद्धो करंडओ नवरं । भीपदि अनहतं अभएणं पुच्छियच्या तो ।।२३९।। आहूय तो पुच्छिय सचिवेण जहातहं भणंती ते । मुक्का खामेऊण उ दुदिणं टाउं तओ चलिया ॥२४०॥ दसनरपलोयगेहिं अह गहिया चंडसेणपुरिसेहिं । खित्ता य चंदसेणाबलिहे दिजणमझे ॥२४१॥ पियदसण सपुत्तं चेडीजु गहित्तु पल्लिबई। देवीपूयाहेउं समागो तत्थ सपरियणो ॥ १४२ ॥ RAMPARENTIANShullauriN HIT ॥२३३॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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