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बन्धुदत्त
कथा
श्रीदे अडविं लंघिय कस्सवि सरस्स तीरंमि आविट्ठो ॥१४॥ तत्थट्टियस्स सत्थस्स तस्स रयणीइ चरिमपहरंमि । पडिया धाडी पल्लीचेत्य० श्री वइस्स अह चंडसेणस्स ॥ १४२ ॥ चोरेहि विलोडिता तत्थ गहियं च सत्थसबस्सं । पियर्दसणं च नेउं समप्पिया चंडसेणस्स | धर्म संघा
॥१४३।। अह दुद्धरसोगभरावरुद्धकंठक्खलंतवयणा सा। निवडतवाहसलिलप्पवाहधोयाणणा रुपई ॥१४॥ रे दइव ! तस्स सिटिपारविधी
मस्स जइ गिहेऽहं तए विणिम्मविया । ता कीस एरिसाऽऽवयमहण्णवे दुत्तरे खित्ता ॥१४५॥ सा कत्थ सिरी सो जयणिजणय- | ॥२२८॥
सम्भावनिम्भरो नेहो। कह सव्वंपि पणटुं गंधचपुरंव. वेगेण? ॥१४६।। खणमुल्लसंति उवणेण निवडंति हेतुओ सहसा । खपवणुधुयधयवडसमाई रे तुहविलसियाई ॥१४२।। इय सोयसंकुलं दीणमाणसि पिच्छिउण पल्लिबई । चिंतेइ झाइ करुणो नेमि इमं | किं सठाणमि ॥१४८॥ इय चितंतो तप्पासवत्तिणि चेडियं स चूयलयं । पुच्छइ का एसा करस वत्ति? सावि य कहेइ इमं ॥१४९॥
कोसंबीए पियदंसणत्ति जिणदत्तसिविणो धूया । इय सोउं सो सहसा निमीलियच्छो गओ मुच्छं ॥१५०॥ सिसिरपवणाइणा तो | गयमुच्छो अहह मे कयमकज्ज । इय जपतो पुट्ठो तीए किमिणति ? सो भणइ ॥१५१॥ पियदंसणि ! मा वीहसु जहऽहं जीवापिओ
तुहं पिउणा । तह सुणसु इओ कइया उ निग्गओ चोरियाइ अहं ।। १५२ ।। पत्तो वच्छाविसए गिरिगामे निसिमुहे सचोरजुओ। पियमाणो तत्थ सुरं पत्तो आरक्खिगनरेहिं ॥१५३|| धरिऊण माणभंगस्स निवइणो तेहिं अप्पिओ तत्तो। तेणवि हणाविओऽहं तो | नीयंतो वहनिमित्तं ॥१४५|| पोसहपज्जते पारणाय गच्छंतएण ते पिउणा। दिहो दयालुणा तो मोयः वय चितवत्थाणि ।।१५५॥ दारं विसज्जिओऽहं ता आइस भइणि ! किं करेमि तुह ? । सा भणइ इह विउत्त मेलसु मे बंधुदत्तपई ॥१५६।। ओमंति भणिय | सोगिहे सदा व पुत्तु भत्तीए। नीहरइ बंधुदत्तं पलोइउंचंटसेणो उ॥१५७॥ अह भमिओ पल्लिचई तं अडवि चिरमपाविउ
MIRMIRE
Malla
॥२२॥