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चन्दनाम तान्तरागि
श्रीदे पैत्यश्रीधर्म संघाचारविधौ ॥१९४॥
अन्ने विति इगेणं समथएणं जहनवंदणया। तदुगतिगेण मज्झा उक्कोसा उहिं पंचहिं वा ॥ २४ ॥
इत्यसयाओ मज्झे इरियावहियाअमावओ दुनि। एवं उक्कोसाए चउरो सकत्थया नेया ॥१॥ (१७०) मणिऊण नमुकारे | सकत्थयदंडयं अपडिऊणं । इरियं पडिकमंते दो चउरो वावि पणिवाया ॥२॥ (१७१) इरियाए पुर्व वा पणिहाणते व सकस्थय | मणणे। दुगुणचिइवंदणाते व हुंति सक्कत्थया तिनि ॥३॥ इगवारवंदणे पुत्र पच्छा सक्कथएहिं ते चउरो। दुगुणिअवंदणाए पुची पच्य व सक्कथए ।॥४॥ सरकथओ अ इरिया दुगुणिअचिइवंदणाइ वह तिनि । थुत्तपणिहाण सक्कयो य इय पंच सक्कथया ||५|| पाढकिरियाणुसारा भणिआ चिइवंदणा इमा नवहा । तिविहाहिगारिभावा तिहावि सा इय भवे नवहा ॥ ६॥ उक्तं चअहवावि अपुणबंधगविरयाविरयाण मित्रभावाणं । विण्हहिगारीण पिहो तिविहावि भवे तओ नवहा ।। ७॥ मिच्छत्तुक्कोसठिई न बंधिही अपुणबंधगो जेण । समयकुसलेहिं सो पृण इमेहिं लिंगेहिं नायबो ॥८॥ पावं न तिवभावा कुणइ न बहुं मन्नई भवं घोरं। उचियट्ठिई च सेवइ सबथवि अपुणबंधोति ॥९॥ तत्तत्थे रोयंतो सम्मदिट्ठी असग्गहच्चाया । देसेअरविरइजुओ चारित्ती तुलियसामत्थो ॥१०॥ सुस्सूस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए । वेयावच्चे नियमो सम्मदिविस्स लिंगाई ।।११।। मग्गणुसारी सड्ढो पनवणिजो किआचरो चेव । गुणरागी सक्कारंभसंगओ तह य चारिची॥१२॥ तथा-वंदणकहासु पीई असवण निन्दाइ निंदगऽणुकंपा। मणसो निचलनासो जिन्नासा तीऍ परमा य ॥१३॥ गुरुविणो तह कालाविक्खा उचिासणं च सइ कालं । उचियस्सरो य पाढे उवउत्तो तहय पादंमि ॥१४॥ लोगपियत्तमनिदियचिट्ठा वसणमि धीरया तहय । सत्तीए तह चाओ य लद्धलक्खणतणं येव ॥१५॥ एएहि लिंगेहि नाऊणहिगारिणं तओ सम्म । चिइवंदणपाढाइवि दायर होइ विहिणा उ ॥१६॥ भणि च-अत्यो |||
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