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________________ । हररायमेहनाउति। होही अन्चुअकप्पे सो तु सामाणिो देवो ॥९८॥ तंवबाउहचकी अट्ठमए रयणसंचयाइ इमो सहसाउहो । अमिततेजः चैत्य श्री- | तुह सुओ नवमे दो तइ मेविज्जे ॥९९॥ पुंडरिगिगीइ सावकमायरा मेहरहदढरहति । दसमे इक्कारसमे दोनिवि देवा उ सबढे । कथा धर्म० संघा | ॥१०॥ चरिमे पंचमचक्की संती सोलसजिणो गयउरे तं । चक्काउहुत्ति एसो सुओ गगहरो य तुह पदमो ॥१०१॥ पोससिबचारविधौ । नवमि नाणं तुह भद्दवत्र हुलसत्तमीचवणं । जिहस्स बहुलतेरसि जंमु सारणचउदसीइ वयं ॥१०२॥ एवं देविंदमुर्णिबंदिश्रो संति॥१७३॥ नाहतित्थयरो । ससिहरसधम्मकित्ती भवेसि भवियाण संतिकरो ॥१०॥" सोउमिय हरिसिया ते इक्विकं तत्थ चेइ काउं। नमिअ मुणिं गिहिधम्म गहिउँ पत्ता सयं ठाणं ॥१०४॥ जिणवरभवणसमीवे पोपहसालाइ पोसहोवगओ । विजाहराण धम्म कहेइ कयावि अमियतेओ॥१०५।। भणिअंच-"वंदइ पडिपुच्छइ पज्जुवासई साहुणो सययपेन । पढइ गुणइ सुणेद अ जणस्स धर्म परिकहेइ ॥१०६॥" अह चारणमुणिजुयलं समदमतवनियमसंजमुज्जुत्तं । गच्छइ गयणयलेणं सासयजिणपडिमनमणत्थं ॥१०७॥ स्ययगिरिसिहरसरिसे नरवइभवर्णमि अह निएइ तयं । तुंगं अदम्भसरदन्भविन्भमं जिणहरं रंग ॥१०८॥ तो झत्ति पहठ्ठमणं जिणनमणत्थं तयं समोसरिअं । तं दटुं अन्भुद्विय नमइ निवो सुठ्ठ अइतको ॥१०९॥ तेऽविध चारणसमणा तो तिक्खुत्तो पयाहिणं काउं। वंदित्तु जिणवरिंदे विहीइ निवई भणंति इमं ॥ ११० ॥ उक्तंच वसुदेवहिंडिएकोकेविंशतितमलंमे-ते चित्र चारणसाहू बंदिऊण जिणवरिंदे तिक्युत्तो पयाहिणं च काऊण रायाणं इमं वदासी" "देवाणुप्पिय ! दुलहं मणुयत्तं लहिय इह पमायं मा । काहिसि जिणवरधम्मे जम्मजरामरणभयहरणे ॥ ११२ ।। अविय-जिणाणं पूजताए, साहणं पज्जुवासणे । आवस्सयंमि सज्झाए, उज्जमेज्ज दिणे दिणे ॥११॥ जओ-कदाचिन्नातंकः कुपित इव पश्यन्यभिमुखं, विद्रे दारियं चकितमिव || ॥१७॥ TAININANTAR A merONE DPain
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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