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________________ Gril कथा श्रीदे० चैत्यश्री- धर्म० संघाचारविधौ ॥१६६॥ MIRINA आणा आराहिया जिणिदाणं । संसारदुक्खफलया तह चेव विराहिया होइ ॥ ८४॥" इय मुणिउं कणगसिरी]] विण्डं पइ मणइ जहा जले नागा । छिडेणऽप्पेणवि दुक्कएणवि तह जिओऽवि भवे ॥४५॥ अप्पेणवि दुकएणं जइ एवं लन्भए दुई | दुसहं । ता सयलदुकयखाणीहि मह अलं कामभोगेहिं ॥ ८६ ॥ सामि ! पसीय दयावह मह दिक्खं सयलदोसखयदक्खं ।। वीहेमिमाउ भवरक्खसाउ एरिसछलपराउ ॥८७। भणइ हरी होउ इमं सुयणु! परं इण्हि मुहपुरि जामो। तत्थ सयंपहजिणवरपासे दिख गहिज तुमं ॥ ८८ ॥ एवंति तीइ वुत्ते तो पत्तो सुभपुरीइ नमिय मुणिं । विजयब निवेहिं तओ अहिसिचो अद्धचकित्तं ।। ८९ ।। अन्नदिणे तत्थागयसर्यपहजिणंतियंमि कणयसिरी । गिण्हइ दिक्खं बलविण्हुविहियनिक्खमणवरमहिमा ॥ ९ ॥ कणगावलिमुत्तावलिरयणावलिभद्दपमुह विविहतवो । विहिणा उ तवेमाणा धम्माणुट्ठाणविहिनिरया ॥९१।। उप्पननाणरयणा वरदंसणदिट्ठसयलवत्थुगणा। सा कणयसिरी सिद्धा अणंतसुहबीरियसमिद्धा ॥९२॥ भो भो भव्या भव्यभावप्रधानाः, श्रीदत्ताया वृत्तमेतत्रिशम्य | मा वैतथ्यं स्वल्पमप्यत्र धत्चानुष्ठाने श्रीतीर्थद्वंदनादौ ॥९३॥ इति श्रीदत्ताकथा।। इत्युक्तं द्विदिशि इति तृतीयं द्वारं, संप्रति द्विदिस्थितैरपि मूलबिंबस्य कियत्यवग्रहाद देवा वंदनीया इत्याशंकायां चतुर्थमवग्रहद्वारं गाथोत्तरार्दुनाह नवकर जहन्नु सट्टिकर जिट्टु मझुग्गहो सेसो ॥२२॥ मूलचिंचात् नव हस्तान् जघन्यो-जघन्योऽवग्रहः,जघन्यतोऽपि उच्छासनिश्वासादिजनिताशातनापरिहाराय नवहस्तबहिःस्थितैः देववंदना कार्या,पष्टिश्च हस्तान् ज्येष्ठ-उत्कृष्टोऽवग्रहः,तत्परतः उपयोगासंभवात् , मध्ये-मध्यमे शेषो नवकरेभ्य ऊर्ध्व पटेश्चार्वाग् अवनदो मृलरिवबंदनास्थानाभ्यंतरालभृभाग इति ॥ अन्यैः पुनर्द्वादशभेदोऽयमुक्तो । तथा च पंचस्थानकेऽभिहितं-उकोस Ammam ॥१६६॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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