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________________ E या श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१३८॥ सिरिहिरीधिइपरिवजिए धिरत्यु णं तव अहनाए अपुन्नाए दहगाए दूहगनिबोलियाए जीए णं तुमे तहारूवे साहुरूचे मासखम| "पारणगंसि सालइएणं जाव ववरोविए' ता मरसु दुकुलीणे ! निस्सर गेहाउ चयसु वत्थाइ । पाविहिसि इमस्स फलं निहणंति तहा चवेडाहिं ॥३६॥ एवं अकोसित्ता उद्धंसित्ता वहा निमच्छित्ता । निच्छोडिय तज्जिय ताडिऊण कइंति तं सगिहा ॥ ३७॥ सिंघाडगतिगचउक्गचच्चरचउमुहमहापहाईसु । हिंडइ सा अलहंती कत्थइ ठाणं व निलयं वा ॥३८॥ तथा-हीलिजंती जचाइएहिं निदिञ्जमाण तह मणसा। खिसिजंति परोक्खं गरिहजंती तह समरखं ॥ ३९ ॥ तजिजंती तह अंगुलीहिं दंडाइएहिं हम्मंती। घिधिकारिजंती नागरनरनारिनियरेहिं ॥४१॥ फुट्टहडाहडसीसा रिंछिन्च अतुच्छमच्छियच्छन्ना । दंडियखंडनिवसणा मल्लगखंडगषडगहत्था ॥४२॥ तो गेहंगेहेणं हेउं मिक्खाइ हिंडमाणी सा । नरइच इहेव भवे तिक्खं दुक्खं समणुपत्ता ।। ४२ ।। इय तीए सारीरियमाणसदुहसायरे निवुडाए । दड्ढोवरिपिडगसमा सोलस रोगा समुन्भूया ॥४३॥ खासे १ सासे २ जरे ३ दाहे ४, कुच्छिसूले ५ भगंदरे ६ । अवस ७ अजीरए ८ दिवी ९, अच्छिमूले १० अरोयणे ११॥४४॥ कंडू १२ जलोयरे १३ सीसवेयणा १४ कन्नवेयणा १५ कुठे १६ । इय आमयभीएहिं व पाणेहिँ कहवि सा मुक्का ॥४५॥ अदृदुहट्टवसट्टा मरिउं छट्ठीइ नरयपुदवीए । उववण्णा नागसिरी बावीसंसागराउ ठिई ॥ ४६॥ तत्थ सहित्ता अइदुस्सहं दुहं तो झसेसु उप्पन्ना । सत्थहया अह मरिउं सत्तमनिरपंमि उववन्ना ।। ४७॥ सित्तीससागराई सहिय दुहं तत्थ पुण असो जाओ। पुण सत्तमनेरइओ पुण मच्छो तयणु छट्ठीए ।। ४८ ॥ दुक्खुत्तो दुक्खुत्तो दुखत्ता सा समत्तनरएसु । भमिया जह गोसालो अणंतकालं भवारण्णे ॥४९॥ सबस्थ सत्थवज्झा दाहुप्पचीइ सा उ मरमाणा । भमिया दीहद्धं चाउरंतसंसारकान्तारं ॥५गाएत्तो कहवि लहियसुकुमालिभवं कयनिया-101||॥१३ m ailASHAPATRIKAHANITIATI Animalitimettle AHauntimes
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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