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________________ श्रीदे० चैत्य श्रीधर्म संघाचारविधौ | ॥१०४॥ किमिणं मो.मद ! आह सो माई । केणऽविऽहं पारद्धो हणिउं णिसुणेमि वयणमिणं ॥५५॥ हा हा इमो वराओ हम्मद अवराहव- । देवदत्तकथा जिओ किमिह ! । तबो सत्थाहो जेणमिणं खणिउमारद्धं ॥५६॥ सत्थाहो भयमीओ निहिमुज्झिय गंतु नियगिहे सुत्तो। तं खंदकयं नाऊण कइयवं हरिसिओ नंदो ॥५७।। अह निसि ते जणयसुया तमणग्यं रयणसंचयं गहिउँ । कमसो सपुरंमि गया मिलियासिं सयणपउरजणा ।।५८॥ यता-संपदि सपदि घटते कुतोऽपि संपचिसहभुवो लोकाः। वर्षाभूनिवहा इव काले कोलाहलं कृत्वा ।।५९॥ पडिबुद्धो सत्थाहो गोसे अनिएवि ते विचिंतेइ । हुं लोभतरलियमणा गहिय निहाणं धुवं नट्ठा ।।६०॥ पत्तो निहाणठाणं तं रितं अनियं च दट्टण । अंसुजलाविलनयणो पहाविओ तेसि पुट्ठीए ॥६१॥ कहकहवि भद्दिलपुरे पत्तो सढयाइ नंदखंदेहिं । तस्स उचियपडिवत्ती विहिया वत्थाइदाणेण ॥ ३२ ॥ कहियं च इमं मा कोइ गिण्हीहि तंति जा वयं पत्ता । निहिठाणे ता. दिवा तं गहिउँ नस्सिरा केऽवि ॥६३।। तो तप्पिट्ठीइ वयं गया सुदरेण न उण ते पत्ता । पहभट्ठा झूरता कहवि तओ इत्थमणुपत्ता ॥३४॥ अह | तद्दिण्णोचियसंबलो गो सामयंमि सत्थाहो । ते पुण पियमायातणयसुण्हया तेण दविणेण ॥६५॥ सुचिरं मुंजिय भोए पठ्ठचरकूडकवडनियडिपरा । कालंमि काउ कालं संपत्ता विविहकुगईए ॥ ६६ ॥ मित्तविसंवायणदविणगहणवईतहरिसपसरेण । दुजयमज्जियमंतरायकम्मं वसा तस्स ॥ ६७ ।। जम्मो जहिं जहिं होइ ताण नहु भोषणाइसंपत्ती। अञ्चतमुजयाणवि तहि तहिं जायइ कहिंपि ॥६८।। कीरति जाई लोहामिभूयचिचेहिं इत्थ जीवेहिं । कम्माई अहम्माई परिणामे ताई बाहंति ॥६९।। सरिसवमित्तसुइट्टा थोपदिणकए कुणंति तमकज । मृढप्पा अहह जओ चिरमइगुरुयं लहंति दुहं ॥७०॥ चउमुवि गईसु भमिउं ते चउरो कहवि अह कुणालाए। विणयंधरसिद्विस्स य जाया दो दो सुआ.धृा ॥१॥ बालत्ते गहियवया दुच्चरतवचरणखीणवहुयरया।। ॥१०४॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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