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________________ M श्रीदे. चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥१०२॥ PRAMITRAPAHILINGAP सा पवओइ ।।२१॥ अह निसि वसंतसेणा रित्तं कलसं निएवि सुमिणमि। साहेइ मंतिणो सोऽवि आह नणु तुह सुओ होही ॥२२॥ सा भणइ किंतु रित्तो कलसो सो आह किंपि नहु एयं । तयणु इमा तुट्ठमणा तं गन्भं वहइ सुहसुहओ ॥ २३ ॥ काले सुयं । पस्या दुवालसाहे करेवि जंममहं । बालस्म कयं नाम जणएहिं देवदत्नुत्ति ।।२४।। तं पच जुबगगुणं मंतिवरिठ्ठो उ चंदसिहिस्स । सोमामिहधृयाए पाणिग्गहणं करावेइ ॥२५॥ अनमि दिणे रमा अवराहं किंपि पयडिउं लोए । उद्दालिऊण मुदं मंती गुत्तीइ पक्खिसो ॥२६. विविहं तजाविजइ कारिजइ लंघणाई बहुयाई । परपरिभवदवदड़ो मंती चित्ते विचिंतेइ ॥२७॥ वरमरिसदनेभ्यो मिक्षया प्रागवृत्तिरिमटविनिवासो हालिकत्वं वरं च । वरमसमजनानां भृत्यभावप्रपत्तिस्तदपि नरपतीनां माधिकारेण लक्ष्मीः ॥२८॥ अधिकाधयोऽधिकाराः कारा एवाग्रतः प्रवर्तते । प्रथमं न बंधनं तदनु बंधनं नृपतियोगजुषाम् ।।२९।। लद्धेणवि मुत्तेणवि दिनेणवि किं सुएण अत्थेण ? | निवडइ विडंबणा जस्स एवमममाऽवसाणंमि ॥३०॥खंडुच्छुसकराणवि रसं विसेसेइ पढमसंमाणो । रन्नो अंते सोचिय विसं विसेसेइ तालउडं ॥ ३१ ।। अह दिनसव्वदो सुद्धो दिवेण गुचिओ रना । मुक्को सगिहे पत्तो मंती वुत्तो पियाइ इमं ॥३२॥ पूरिजंती रित्ता भरिया रित्ता भवंति इह पुरिसा । भमिरारघघडियन्च किंनु ता चित्तता. वेण ॥ ३३ ॥ अविय-नणु कस्स थिरा लच्छी ? पुना सबै मणोरहा कस्स १ । को वल्लहो निवाणं ? निचं कस्स व सुहं इत्थ ? ॥ ३४ ॥ मंत्री-दइए ! अयंडपडिए दुक्खे खलु होइ चित्तसंतायो । पुवविणिच्छियपडिए को तस्स हविज अवयासो ॥ ३५ ॥ | वसंतसेना-कह निच्छओ इहासी, मंत्री-एयं कहियं तया उ देवीए । वसंतसेना-ता कि तणएण विणा न सारि अजउत्त! नए ॥३६॥ मंत्री- जेण पाविया इट्टमणिट्ट पहनमपहुतं । तं पुण होंड अवस्स निमित्तमित्तं परो होइ ॥३७॥ जपइ अणिट्टहेर्ड AHADRIPennar ॥१०॥ RAN
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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