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श्रीदे
चैत्यश्री
धर्म संघाचारविधौ | ॥८४॥
पधजो ॥२६॥ सामन्नमसामनं पालित्ता बंभलोयकप्पसुरो। ऊणदससागराऊ जाओ चंदाभसुविमाणे ॥२६१|| अइकट्ठो उन्नदिय । अग्रपूजायां सत्तमपुढवीउ ममिय भूरिभवे । तिरिएसुं सहिऊणं दुहं पहुं खवियबहुकम्मो ॥२६।। अह जाव नईतीरे गोसिंगतबस्सिनंदणो हरिकूट
संबंध: जाओ। नामेणं मिगसिंगो उकडअन्नाणकट्ठरओ ॥२६३।। सविमाणगयं खयरं दठु नियाणं करेवि इह जाओ। निववइरदाढविजाजिम्भसुओ विजुदादुत्ति ॥२६॥ तह वजाउहदेवो सबट्ठा चविय वीइसोगाए।जाओ विजयंतसुओ उ संजयंतोत्ति सो उ अहं ॥२६॥ सिरिदामसुरो बंभाउ चवियभाया जयंतनामो सो। होउं किंचिविराहियचरणो जाओ इमो धरणो॥२६६॥ पडिमडिओ अणीओ अमुकवरेण विज्जुदाढेण । इत्थ अहं इय भो वेरकारणं एयमेयस्स ॥२६७॥ जइ पुण पुरोहियभवे मुत्तु कसाए मणमि चिन्तंतो। नियदोसेणेव मए पत्तमिणं वसणमइदुसहं ॥२६८।। अहि१ चरमर सप्प३ धूमा अयगर५ धूमा६ तिकट्ठ माधबई८ । इन्चाइ बहुभवेसुं न सहतो दारुगदुहं तो ॥२६९॥ ता निज्जिणेह कोहं सया सलोहं चएवि संमोहं । तरिऊण भवजलो. ई जइ इच्छह सिवसुहममोहं ॥२७०।। पुण भणइ तेहिं पुट्ठो इह तीएऽणागए जिणे स मुणी । विमलाई भावजिणा बार अईया य| | रिसहाई ॥ २७१ ।। वीयभयसुओ१ धरणो य२ वंदिउं विनवेंति केवलिणं । पहु संगमो इओ णो होही ? बोही तहा सुलहा! ॥२७२|| केवली-इह मेरुमालिरन्नो अणंतसिरि? अमियगई य२ देवीणं । होहिह पुत्ता मंदर? सुमेरुणोर तुम्हि महुराए ॥२२७॥ तुम्हं दुण्हवि रज्जं दाऊण कयाइ मेरुमालिनियो । सिरिश्मिलजिणसगासे पव्वइउं गणहरो होही ॥ २७४ ॥ तुम्हेवि कयाइविहु जाईसरणा चएवि रज्जसिर । सिरिविमलजिणसमीवे सिज्झिस्सिह विहियवरचरणा ॥२७२।। एतद्भवसंग्राहिके गाथे-वारुणि य । पुण्णचंदोर सुकंमिः जसोहराध य लंतयए ५। स्ययाउह६ अच्चुयए७ वीयभोट लंत९ मंदरो१० सुक्के११ ॥२७६॥ देवी य
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