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________________ अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध: सरं वियर्ड अखंडवणसंडमंडियमनदुग्गं जन्थ य जलं महामुणिमणं व स मुइअतुच्छ॥१३९॥ तस्संतियंमि भोयणसमए आवासिओ चैत्यश्री- तओ सत्थो । वीसत्थो य पवत्तोरंधणपयणाइमायरिउ॥१४०॥ इंधणकारणमेगे सलिलनिमित्तं परे उ उट्ठति । अन्ने तणगहणत्थं केविह धर्म संघापाकाइणा विग्गा ॥१४१।। इत्थंतरे स हत्थी सहत्थिणीसत्थसंजुओ तंमि । आगम्म सरे सलिलं पातुं काउं च जलकेलिं ॥१४२॥ चारविधी | आरुहिउं पालीए दिसिवलयं जा पलीयए तावः । कुवियकयंतस्सव तस्स दिद्विविसयं गओ सत्थो॥१४३।। तो तईसणउच्छलिय।।७७॥ पवरकोवानलो अरुणनयणो । गलगज्जिएण जलभरभरियंबुहरुव्व गर्जतो ॥१४४॥ सविसेसायमवसुभिन्नकवोलयलंगलियमय सलिलो। सत्थामिमुहो वेगेण धाविउं.पत्रणजइणा मो॥ १४५ ॥ संरंभवियासियवयणकंदरो गसिउमुहिउच्च जमो । उप्पत्थेगं इंतो सत्धेणं तखणा दिह्रो ।। १४६ ॥ पुवकयसुकयचाओक्खितुब समंतओ तो लोओ। जियगाहेण पलाओ सबस्सवि वल्लहं हि जियं ॥ १४७॥ विहडइ स निविडसगडे तडत्ति तोडेइ गुणणियातलए । गोगाइ रडावेई दिसोदिसि विक्खिबइ भंडं ॥१४८।। एवमसमंजसं तं कुणमाणं पिक्खए समणमीहो । उक्सग्गपरीसहसएण पचलो निचला झाणे॥१५९॥ उत्तमसत्तो तो थिरगत्तो मेरुब्ब ठाइ उस्सग्गे। भयरहिओ जियरहिए अक्खुमियमणो सुठाणमि ॥१५०।। अह जाव जहिच्छमतुच्छमच्छरोत्थाहछिन्नसन्थो सो। सन्वत्थ भमइ हत्थी ता पिच्छइ सीहचंदरिसि ॥१५॥ उम्भडरुंडचिकुंडलियवियडनुपयंडसुंदडो तो। तक्षणविष्फारिअअरुणपुक्खरो मरयकालोध ॥१५२।। खयसमयसमीरुक्खित्तसेलकूडोव डंबरियभुवणो। गुरुयतरामरिसबसेण मुक्क उकिट्ठसीकारो ॥१५३ गुंजद्धारुणनयणो पहाविओ साहुसंमुहं जाव । ता हाहारवकलिओ उलिओ बहुलजणरोलो॥ १५४ ॥ | उनियह नियह एसो रायरिसी निजए कयंतगिहे । इमिणा मायंगेणं मायंगेणं हयासेण ॥१५५॥ अहसो साहुबरिटं तं दटुं तेहि ॥७॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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