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________________ चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥ ७६ ॥ महरा मरिउं नयरे पट्ठनामंमि । जाया हिरिमइनामा अइबल निवसुमइदेविसुया || १२१|| संपत्तजुव्वणा पत्रर्णिदुवयणा तओ य नरवइणा । सा पोयणाहिवइणा परिणीया पुन्नभद्देण ॥ १.२२ ।। इओ य- वारुणि विओगभीरू मिगो तहिं चैव संनिवेसंमि । पडिरूयदिएण तीइ पाणिहणं करावे ।। १२३ ।। वह तीए नेहेणं जओ तओ वंचिऊण जंकिंपि । देइ इओ नियडीए इत्थितं बंधियं तेण ॥ १२४ ॥ जो चवलो सदभावो मायाकवडेहिं वंचए सयणं । न य कस्सइ वीसत्थो सो पुरिसो महिलिया होइ ||| १२५ || अविहियसामन्नो विगयविसयतण्हो मिगो मरिय जाया । निव! पुष्णभद्द! हिरिमइदे विसुया रामकण्हाऽहं ॥ १२६ ॥ सा वारुणी उ मरिउं पुत्तो मे पुन्नचंदनरनाह ! । जाओ सि तुमं एवं च कारणं ते सिणेहस्स || १२७|| पुणरवि तप्पयपरमं पणमिय पुच्छे पुनचंदनिवो। भयवइ ! कत्थ गओ सीहसेणरायत्ति १ अह साऽऽह ॥ १२८|| अहिभूषणं तेणं डसिओ तइया निवो मरिय जाओ । वणहत्थी बणयरविद्दियनामओ असणिवेगत्ति ॥ १२९ ॥ सुपरट्ठलट्ठ सत्संगसंगओ, भद्दजाइसंपन्नो | भूमीवइव चिंताइरितदाणवुत्तिकरो ॥ १३० ॥ सुमुणिव्व सुदंतो चारुकुंभसोमिरसिरो य मिच्चोव्व । पावियजंगमभावो अंजणसेलोन्त्र सोहेई ॥ १३१ ॥ अह सीहचंदसाहू सज्झाए उज्जुओ अपडिबद्धो । पंचसमिओ तिगुत्तो समहियनवपुव्वपारगओ ॥ १३२॥ सुगुरूण अणु| ण्णाए एगल्ल विहारपडिमपडिवन्नो । विहरह महिं महप्पा मोहीकय मोहम हिमो से ॥१३३॥ तुह पिउणा सिरिभूई पुरोहिओ मद्दमितवणियस्स । निखेवनिण्हवपरो कओ विडंवित्तु निविसओ ॥ १३४. | अद्भुदुहट्टवसट्टो रोसविसं सो निर्वमि अमुयंतो । मरिउं निवईसिरिहरे अगंधणो विसहरो जाओ ।। १३६ ।। तो अन्नया उ दे संतरंमि सो गंतुमाणसो चलिओ । केणवि सत्थेण सम्मं तत्तो पत्तो य अड| वीए॥ १३७॥ सुविसालसालसहिया जा बहुवरवाणिया सुवंसजुया । पायडकास निसायरबिभीमणा सहइ लंकव्य ॥ १३८ ॥ तत्थं तिथ | अग्रपूजायां इरिकूटसंबंधः ॥ ७६ ॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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