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________________ पा सम्पादकीय - श्री जिनेश्वरदेवोए अर्थथी प्ररूपेल अने गणधरदेवोए सूत्रथी रचेल द्वादशाङ्गीमां श्री आचारागसूत्र ए बीजु अंग छे. सूत्रो ऊपर नियुक्ति भाष्य चूर्ण टीका रचाया छे. अने ए पंचांगी श्री जैन शासननो आधार छे। आ श्री आचारांगसूत्र ए द्वादशांगी मां बीजु अंगसूत्र छे. ते उपर पूज्यपाद सूरीश्वर श्री शीलांकाचार्यजीए टीका रची छे. ते टीकाना प्रथम श्रुतस्कन्धना पांच अध्ययन स्वरूप प्रथम भाग गइ साल प्रगट थयेल अने प्रथम श्रुतस्कन्धना छट्ठा अध्ययनथी सम्पूर्ण श्री आचारांग सूत्र आ वीजा भागां प्रगट थाय छ । आ ग्रन्थना सम्पादन माटे पृ० आगमोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत्सागरानन्दसूरीश्वरजी म. सम्पादित सटीक श्री आचारांग सूत्र तथा श्री आगममंजुषा तथा वाबु श्री धनपतसिंहजी प्रकाशित टीका तथा डभोई श्री आचार्य जंबूस्वामी जैन ज्ञानभण्डारनी हस्तप्रत आदिनो उपयोग करी यथामति संशोधन कयु छ। परम पूज्य व्या० वा० कविकुलकिरीट पू० पाद आचार्यदेवेश श्रीमद्विजयलन्धिमरीश्वरजी महाराजाना पट्टधर तीर्थ प्रभावक पू० पाद आचार्यदेव श्री विजयविक्रमसूरीश्वरजी महाराजना शिष्यरत्नो पू० पाद विद्वद्वर्य पं. श्री स्थलभद्रविजयजी गणिवर तथा तेमना संसारी पिताश्री मुनिराजश्री कमलयशविजयजी महाराज आदिना सदुपदेशथी श्री आचारांग सूत्र सटीक माटे जे भमूल्य सहकार मल्यो छे तेनी अनुमोदना करीए छीए । ॥३ ॥
SR No.600274
Book TitleAcharanga Sutra Satikam Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1980
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size8 MB
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