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उज्वल दर्शनाचारथी चारित्राचार उज्वल, उज्वल चारित्राचार थी तपाचार उज्वल अने अ चारे उज्वल आचारथी वीर्याचार उज्वल. वीर्याचारनी उज्वलताथी जैनशासन उज्वल. ए उज्वल जैन शासन सदा जयवंत वर्ने छे.
आम शासननो आधार कहो के पायो कहो, मूल कहो के प्राण कहो, अ श्री जिनवाणी थे. अने ते जिनवाणी ४५ मूल आगम सहित पंचांगी स्वरूप छे. पंचांगीने अनुसरता प्रकरण अन्थो यावत् स्तवन सज्झाय के नाना निबंध के वाक्य स्वरूप छे. उपशम विवेक संवर अत्रिपदी स्वरूप जिनवाणीथी घोर पापी चिलातीपुत्र पतनना मार्गथी निकली प्रगतिमार्गना मुसाफिर बनी गया हता.
४५ मूल आगमना अधिकारी योगवाही गुरुकुलवासी सुविहित मुनिवरो के. साध्वीजी महाराजो श्रीआवश्यक सूत्र आदि मूल सूत्रोना तेमज श्री आचारांग सूत्रना योगवहन करवा पूर्वक अधिकारी के. श्रावक श्राविकाओ उपधान वहन करवा पूर्वक श्री आवश्यक सूत्र उपरांत दशवैकालिकसूत्रना षड्जीव-निकाय-नामना चोथा अध्ययन पर्यंतना श्रुतना अधिकारी के. आम आगमश्रतना अधिकारी मुनिवरो योगवहन करवा पूर्वक योग्यता मुजब अध्ययन आदि करीने पोताना ज्ञान दर्शन चारित्रने निर्मल बनावे के अने योग्यता मुजब धर्मकथा आदि द्वारा जिणवाणीनुपान करावी साधु साध्वी श्रावक श्राविका रूप चारे प्रकारना संघने तेमज मार्गाभिमुख जीवोने मुक्तिमार्ग प्रदान करे छे.
४५ आगमसूत्रो ६ विभागोमां वहेंचायल छे. (१) अंगसूत्रो-११ (२) उपांगसूत्रो-१२ (३) पयनासूत्रो