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________________ ॥३॥ शा -: अल्प वक्तव्य :जैन वाङ्मयमां जेमसाहित्य एक आगवें स्थान धरावे छे ते पूज्य हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराजाए उपदेशपद महाग्रंथ रच्यो छे. जे अत्यंत उपयोगी बोधक अने जैन शासनना रहस्योने सुझावनार छे. पूर्वोना विच्छेद समये थयेला आ. महान जैन आचार्यश्रीए पोताना साहित्यमा पूर्वनां रहस्योनी छांट उतारोने विषमकालमां दुर्लभ एवं साहित्य उपलब्ध कर्यु छे. तेओश्री एक ब्राह्मण कुलमां कट्टरवादी छा जेनो अक्षर न समजु तेनो शिष्य थई जवानी सत्यसंशोधक प्रतिज्ञा अने वृत्तिथी याकिनी महत्तराधीना वचनथी जैन मुनि बन्या अने जैन वाङ्मय जोया पछी प्रभुजीने का के-आगमो न होत तो आ विषम कालमां अमारा जेबा अनाथोन शं थात? आवी अतूट श्रद्धाबले जैन वाङ्मय पारदर्शी बन्या. आचार्य बन्या जैन शासननी जब्बर प्रभावना करी रक्षा करी अने महान ग्रन्थो वि. रची जैन शासनने सदा जयवंतु राखबानी ज्वलंत ज्योत जगावता गया. तेमनी साहित्य समद्धिमाथी उपदेशपद महाग्रन्थ प्रथम विभाग २०४५ मां प्रगट थयो अने आ बीजो भाग आ साल संपादित थइ प्रगट थतां आ ग्रन्थना अर्थीओ माटे सारु साधन प्राप्त थशे. आ ग्रन्थना संपादनमा क्षति रही होय ते जणाववा विद्वानोने भलामण छ जेथी नवा संपादनोमां ते ध्यानमां लइ शकाय. २०४७ चैत्र वद ४, टुवड (शंखेश्वर) -जिनेन्द्रसूरि ॥३ ॥
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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