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________________ | यस्स। सोत्तिमईए पुरीए रन्नो सिसुपालनामस्स ।।१८२।। पंचमयं दमदंतस्स राइणो हत्थिसीसनयरम्मि । छटुं महराए पुरीए राइणो धरभिहाणम्मि ॥१८३।। सत्तमयं रायगिहे सहदेवसनामगस्स भूवइणो। अट्ठमयं कोडिण्णे पुरम्मि भेसग निवसुयस्स ॥१८४॥ नवमं कोयगरण्णो विराडदेसे सभाउयसयस्स । सेसाण भूमिपालाण सेसनयरेसु दसमं तु ॥१८५॥ ॥५९७॥ तस्साहवणेण सगउदवेण ते तूरमाणमणपसरा । समगं कंपिल्लपुरे गंगातीरे विसालम्मि ॥१८६।। कयसिबिरसं निवेसा दुवयनिरूवियनिवासठाणेसु । पक्खुभियजलहिकल्लोलतुल्लसत्ताठिया सव्वे ॥२८७॥ उत्तुंगथंभसंभारभासमाणं करावए राया। तीए सयंवरमंडवमुदंडपडागसयसहियं ।।१८८।। रयणमय भूरितोरणमइरम्मयसालिभंजियाकलियं । बहुमत्तवारणं वारणाण दसणेहि निम्मवियं ॥१८९।। अह वासरे पसत्थे दोवइकण्णं समं समीहंता । रूढक्कमेण सव्वे नराहिवा तत्थ उवविट्ठा ॥१९०॥ सावि य ण्हाया कयसिंगारा गिहचेइएऽभिवंदित्ता। पुवुत्तरोहिणीकन्नगव्व अह तत्थ संपत्ता ॥१९१॥ सक्खं अपासमणा कस्स वि सा राइणो वयणकमलं । ता दप्पणतलसंकंतमेवमालोइइं लग्गा ।।१९२॥ जं जं हेच्छइ सो सेा न रोयए जा गया निविट्ठाण । पंचण्ह पंडवाणं पुरओ दिढेसु तेसु कमा ।।१९३।। नो अग्गओ न पच्छावि गंतुमेसा सहावओ झत्ति । पुवनियाणवसाओ तेसिं खंधे खिवइ मालं ॥१९४॥ तो जायपमोयभरा वसुदेवाई नराहिवा सव्वे । उच्छालियतुमुलरवा भणंति अव्वो ! सुवरियंति ॥१९५।। धन्नो दुवओ धन्ना य चुलणिया जेसिमं गजायाए । नरपवरा भत्तारा समगं चिय पंचसंपन्ना ॥१९६।। विहिए पाणिग्गहणे सुवण्णकोडीओ अट्ठ दुवयनिवो। P रुप्पस्स तहा वियरइ धूयाए दोवईए तया ॥१९७॥ विहिउत्तमसकारा तो तेण विसज्जिया पुहइवाला । विम्हियहियया ॥५९७।।
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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