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________________ ॥३८५॥ कयमणेण ॥६३।। अकलंकपालियवया समाहिसारा तओ मरेऊण । तियसेसु समुप्पन्ना गुरुप्पओसो तओ चेव ॥६४॥ नवरि पुरोहियपुत्तस्स चित्तओ नो कहिचिवि नियत्तो। तदणुगएणं चिय तेण चरमकिरिया कया सव्वा ॥६५।। जाया तत्थ उदारा भोगा विहिया जिणाई महिमाओ। पत्तम्मि चवणकाले कप्पदुमकपणाईहिं ॥६६॥ मुणिए महाविदेहे वासम्मि जिणंतिगम्मि पुच्छंति । सुयधम्मा उवलद्धावसरा संता जहा अम्हे ॥६७।। किं सुलहबोहिया अहव अन्नहा अग्गिमे भवे होमो । एवं पसिणे विहियम्मि तेहि, भगवं तओ भणइ ॥६८।। एस पुरोहिय पुत्तो दुल्लहबाहो निमित्तमेयाए । किमबाहीए भणियं जिणपहुणा गुरुपओसात्ति ॥६९।। थेवमिणं तो भयवं कया णु लाभो पुणोवि बोहीए । होही, (जिनः-) अग्गिमजम्मे (सुरः-) कत्तो (जिन:-) नियभाइजीवाओ ।।७०॥ (सुर:-) सो कत्थ संपयं (जिनः-) पुरवरीए कोसंबियाए परिवसइ। (सुर:-) किनामगो स भगवं (जिन:-) मूयगा नामा दुइजेण ।।७१।। नामेण पढमगेण उ असोगदत्तोत्ति (सुरः-) कहमिमं जायं । लोए नामं जह मयगोत्ति (जिन:-) सुण एगचित्तो तं । ७२॥ कोसंबीए पुरीए नियसोहोवहसियामरपुरीए । सेट्टी तावसनामा धणकणयड्डो पुरा आसि ॥७३।। भजा अणवजंगी विस्सासपयं अहेसि तस्सपहा । तग्गब्भसंभवो कुलधरो त्ति पुत्तो पगब्भगुणो ।।७४।। सेट्ठी सुट्ठ परिग्गहसत्तो णाणापयट्टियारंभो । धम्मपरंमुहचित्तो कालेण मओ गिहे चेव ॥७५॥ गड्डासूयरमत्ताए जडभावोवगओ समुप्पन्नो । दटुं कुडुंबयं नियगमेव पोराणिया जाई ॥७६।। सरिया जह अस्स पहू आसि अहं पेमपासपडिबद्धो । पायं तत्थेव । ३८५।।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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