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________________ । ॥२१॥ EL. तत्तो मुहूत्तमेत्तेण पेसिया चेडिया इमीइ इहं । पत्ता समप्पियं वत्थजुयलमइकोमलमहग्धं ॥१९५।। तंबोलं पुप्फाणि य अन्नपि सरीरसंठिईजोग्गं । भणियं च तीइ जा सा सरपेरते तए दिट्ठा ।।१९६।। संतोसदाणमेयं पहियं तीए तुहं तहा भणियं । मज्झाभिमुहं हलि ! वणलयाइ एसो महाभागो ।।१९७।। जह महपिउमंतिगिहे संजाय इ संठिओ तहा कुणसु । ता एह तत्थ तुब्भे नीता तो मंतिगेहम्मि ॥१९८।। मउलियकरकमलाए भणिओ मंतीइ तीइ जह एसो । तुह सामिणो सुयाए पहिओ सिरिकंतनामाए ॥१९९।। तो दट्टव्वो तह ठाउरवेण विहियं तहेव सचिवेण । बीयदीणे कमलायरबंधुम्मि समुट्ठिए सूरे ॥२००।। नीओ रण्णो वजाउहस्स पासम्मि तेण सेा दटुं । अब्भुट्ठिओ विदिण्णं धुरम्मि अह आसणं तस्स ॥२०१॥ पुट्ठो वुत्तंतं साहिओ य तेणवि जहोचियं एसो। भुत्तुत्तरकाले • भासिओ य जह तुम्हमम्हेहिं ॥२०२।। अन्नं विसिट्ठसागयकिच्चं काउं न तीरए किंचि । सिरिकताए पाणिग्गहणं ता कीरउ इयाणि ॥२०३॥ सुद्ध दिणम्मि वित्तो वीवाहे। पुच्छिया अह कयाइ । सिरिकता मह एगागिणोवि तं कह णु दिन्नासि ? ॥२०४|| सियदसणपहापहकरपंडुरविहियाहरा भणइ एसा । मम एस पिया बहुबलदाइयपरिपीडिओ संतो ॥२०५॥ अइविसमपल्लिमग्गं समस्सिओ तह य नगरगामाइं । पइदिवसं गंतूणं इमम्मि दुग्गम्मि पविसेइ ।।२०६॥ सिरिमइनामाए पणइणीइ जाया चउण्ह पुत्ताणं । उवरि अहं पिउणो वल्लहा य नियजीवियाओवि ॥२०७॥ पत्ता तारुण्णभरं भणिया सव्वेवि पुत्ति ! नरवईयो । दूरं मज्झ विरुद्धा वट्टति तओ इह एव ।।२०८।। जो मणहरणा कइयाइ कोइ भत्ता घडेज तो मज्झ । सो कहियव्वा जेणाहमस्स काहामि जं जोग्गं ॥२०९।। अन्न
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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