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श्रीउपदे-18 रम्मि जिणो चत्तारि कडे परूवई एवं । संबकडे विदलकडे चम्मकडे कंबलकडे य ।।२०।। एवं सिस्सस्स गुरुम्मि पेम- श्रीगौतमशपदे
बंधो चउव्विहो होइ । तुह पुण गोयम ! कंबलकडयसमाणो मई माहो ॥२१।। अवि य ।। चिरसंसट्ठो चिरसंथुओ यर स्वामि
को नोट चिरपरिचिओय चिरझुसिओ। चिरमणुगओ सि गायम! चिराणुवत्ती य मे होसि ।।२२।। ता देहस्स इमस्स भेए
चरितम् तुल्ला वयं भविस्सामो। मा कुणसु अहो गोयम ! सागं ता धीर गंभीर ! ।।२३।। अह गोयमनिस्साए अन्नेसि मुणीण ||२५४||
बोहणनिमित्तं । दुमपत्तयति नामगमज्झयणं पन्नवेइ जिणो ।।२४।। जहा "दुमपत्तए पंडुयए जहा निवडइ रायगणाण | अच्चए । एवं मणुयाण जीविए समयं गोयम ! मा पमायए ।।१॥" इत्यादि ।। छट्ठट्ठमाइतवमुग्गरुवमेसा सया निसेवंतो । मज्झिमपुरीए पत्तो विहरंतो भगवया सद्धि ॥२५॥ कयवासावासाणं तत्थ दुवेण्हं पि वोलिए संते। पक्खाण सत्तगे तस्स माहवोच्छेयणनिमित्तं ।।२६।। कत्तियअमावसाए समीवगामम्मि पेसिओ पहुणा । गोयम! इमम्मि गामे
संबोहसु सावगं अमुगं ॥२७।। तत्थ गयस्स वियालो जालो तत्थेव तं निसि वुत्थो। जा नवरि पेच्छइ सुरे निवयते KI उप्पयंते य ।।२८॥ उवउत्तेणोवगयं भयवं कालं गओ जहा अन्ज । तेण पुण विरहभीरुयमणेण न कयाइ चित्तम्मि ।।२९।। IPS विरहदिणो परिभावियपूवो सो तक्खणं विचितेइ । भगवमहो निन्नेहो जिणाहिवा एरिसा हंति ॥३०॥ ज नेहरागपPM रिगयचित्ता जीवा पडंति संसारे । एत्थावसरे णाणं उप्पन्नं गायमपहुस्स ।।३१।। केवलिकालो बारस वासा जाओ तहा
विहारो य । जह भगवओ तहा नवरमइसएहि विरहिओत्ति ॥३२।। पच्छा अजसुहम्मस्स निक्खवित्ता गणं गओ सिद्धि । पच्छा केवलणाणं अजसुहम्मस्स उप्पण्णं ॥३३॥ अट्र वरिसाणि सेा वि य विहरित्ता केवलित्तणपहाण । तो
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