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________________ |चरितम् थीउपदेरेहि महरेहि य सूइज्जइ अप्पणो य गंधणं। पाउसकालकयंबो जइवि निगढो वणनिगंजे ॥२४२।। कत्थ व *श्रीवज्रशपदे स्वामिन जलइ अग्गी कत्थ व चंदो न पायडो लोए ?। कत्थ व वरलक्खणधरा न पायडा हुंति सप्पुरिसा? ॥२४३।। सीहगिरी दिन्नगणो वइरस्स समागयम्मि समयम्मि। कयभत्तपरिचाओ जाओ देवो महि ड्डीओ ॥२४४॥ भयवंपि वइरसामी सएहिं पंचहि मुणीण परियरिओ। कुणइ विहारं सो जत्थ (तत्थ) [] ।२४६|| तत्थुज्छलंति रवा ॥२४५।। उराला सयल वियक्खणाण संजणियमाणसाणंदा। जह अञ्चब्भगुणरयणभायणं संपइ 8 इमो त्ति ॥२४६।। अह अत्थि कुसुमनयरे धणसिट्ठी सुठ्ठपावियपइट्टो। भजा तस्स मणजा लजासाहग्गगुणगेहं | ॥२४७।। अह ताण सुया नियदेहरूवलच्लीए च्छिन्नमाहप्पा । सुरसुंदरीणवि नवं जोव्वणमोरालमणुपत्ता ॥२४८।। जाणाणं सालाए तस्स ठिया साहणीओ पइदिवसं । वइरस्स गुणे सरइंदुनिम्मले संथणंति जहा ।।२४९॥ एस अखडियसीला बहुस्सुओ एस एस पसमड्डो । एसा य गुणनिहाणं एयसरिच्छो परो नत्थि ।।२५०।। "द्वावेतौ पुरुषौ लोके परप्रत्ययकारको। स्त्रियः कामितकामिन्यो लोकः पूजितपूजकः ॥१॥" इय वयणमणुसरंती सा दढमणुरागतप्परा जाया। वइरम्मि वइरदढमाणसम्मि पियरं भणइ एवं ॥२५१।। जइ मे वइरो भत्ता हाजं ता हं भयामि वीवाहं । अन्नह पजलियजलणोवमेहि भोगेहि ना कज्ज ॥२५२॥ उत्तमकुलसंभूया उति वरगा न इच्छई सा उ। साहति 'साहुणीओ जहा न वइरो विवाहेइ ॥२५३।। सा भणइ जइ न वीवाहमेस कुणइ अहंपि पवजं । घेच्छामि निच्छओ तीए एस ठविओ नियमणम्मि ।।२५४।। भयवंपि वइरसामी पाडलिपुत्तं कमेण संपत्तो । तुहिगुज्जलतज्जसपसर-सवण ॥२४६।।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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