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________________ . .. . परिणा मिक्यां श्रीअभय श्रोउपदे- पोषयन्ति ॥३१॥” इय भणिए अभएणं बद्धो सो तेहिं तेहिं वयणेहिं । जह न अमुक्को पयंपि गंतुं निययरज्जे शपदे ॥३२॥ पुव्वाणीया भजा उवणीया तस्स तीए उप्पत्ती । सेणियनिवस्स मित्तो एगो विजाहरो आसि ।।३३।। तेण समं मित्तीए थिरत्तमिच्छंतओ नियं भगिणिं । सेणा नाम पयच्छइ करेइ गरुयं निबंधं च ॥३४॥ जह एसा अन्नासिं पुव्वमहेलाण उवरि ठवेयव्वा । सुविणेवि विप्पियं परिहरिज एयाए कयपणओ ॥३५।। सावि य सोहग्गगुणेण तस्स दूरं मणप्पिया ॥१८६।। जाया। पुव्वंतेउरविजाहरीउ पइ विहियकोवा ॥३६॥ भूगोयराए एईए अम्हं माणो कहं खयं नीओ। इय चिंतिय लद्धछला मारिंति विसाइजोगेण ॥३७।। तीए धूया बाला सा जणगेणं विणासभीएण । उवणीया सेणियनरवइस्स सायं च सो पत्तो ॥३८॥ जोवणभरमारूढा दिन्ना अभयस्स सावि तस्स पिया। उच्छलियमच्छरा सेसिगाओ छिदं निहालिंति ॥३९।। मायंगीओ ओलग्गियाओ बहुसिद्धखुद्दविजाओ । ताओ भणंति कजं किं अम्हाहिं, तओ ताहिं ।।४।। विजाहरस्स तणया अम्हं ओहावणं बहु कुणइ । ता जायह जह न एसा हवइत्ति निवेइयं तासिं ।।४१।। उच्छो भगं पदेमो जहा विरजइ पई इमीए लहुं । इय परिभाविय विहिया मारी नयरीए अइघोरा ॥४२।। लोगो * लग्गो मरिउ मायंगीओऽभएण तो भणिया । लह लहह मारिकारणमेयं अंगीकयं ताहि ॥४३।। देवीए तीए सेजाहरम्मि माणुसकरंकमाईया। विउवित्ता निक्खित्ता मुहं च विहियं रुहिरलित्तं ॥४४॥ रनो निवेइयं देव! नियघरे चेव मग्गहा मारि । जाव गविट्ठा दिट्टा सा रक्खसरूविणी तेण ।।४५।। पुणरवि मायंगीओ आइट्ठाओ विहीए घाएह। रत्तीए जह न याणइ कोवि कहचिवि नयरिलोओ ॥४६।। ताहिं पुण सा निद्दोसिग त्ति एवं मणे धरतीहि । XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXE IXX XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ॥१८६॥
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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