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________________ श्रीउपदेशपदे० ।। १५६ ।। सवाणीए । धम्मे कहिजमाणे सबरसरूवो नरो एगो ॥७०॥ लोयप्पवायवसओ एसो किल कोइ एत्थ सव्वष्णू | निच्छयमिमं धरेंतो मणम्मि पुच्छे माढत्तो ॥ ७१ ॥ ताहे भणिओ जयजीवबंधुणा भगवया जहा सोम ! | वायाइ पुच्छ बहवे सत्ता जं बोहिमुवईति ॥ ७२ ॥ एवं भणिओवि स लज्जमाणमाणसवसेण पडिभणइ । भयवं ! जा सा सा सा आमंति रूविए पहुणा || ७३ || पभणइ गोयमसामी जा सा सा सत्ति किं भणियमिमिणा । उट्ठाणपारियावणियमाह एयस्स तो भयवं ||७४ || जहा ; चंपा णामेण पुरी पुरोगमा पुरवराणमिह अत्थि । इत्थीलाला परिवसइ तत्थ एगो सुवण्णारो ।। ७५ ।। सेा पंच सुवण्णसए दाऊणं कण्णगाण जा जत्थ । रूवगुणमणहराओ सगउरखं ताउ परिणेइ ||७३ || एवं पंचसयाई तासि संपिडियाई, पत्तेयं । कारेइ, अलंकारं तासि सो तिलयचउदसमं ॥ ७७ || जम्मि दिणे जीइ समं भागं भुंजेउमिच्छइ तमि । सव्वमलंकार देइ तीइ ना अण्णदिवसेसु ।। ७८ ।। सेा अच्चंतं ईसालुओत्ति गेहं कयाइ ना मुयइ । न य अन्नस्स पवेसं वियर मित्तस्सवि गिम्मि ॥७९॥ अन्नदिणे मित्तगिहे अचंतुवरोहपरिगओ संता । वट्टतम्मि पगरणे गओ ओ चितियमिमाहि ||८०|| पइरिक्कमजमुवलद्ध मेयमइभूरिकालओ कहवि । ता व्हामा मंडेमा आविद्धामो अलंकारे ॥ ८१ ॥ विहियं ताहिं तह चेव सव्वमादरिसवग्गहत्थाओ । जा पेच्छति समंगं सहसा सा आगओ ताहे ॥ ८२॥ अइरोसारुणनयणो दट्ठणं ताउ अन्नरूवाओ । गिन्हइ करेण एकं पिट्टेइ य जा गयं जीवं || ८३ || अन्नाहि चितियं नूणमेस अम्हेवि मारिही रुट्ठो । ता आदरिसगपुंजं एयं कुणिमो तओ मुक्का ||८४|| एगूणा पंचसया अद्दागाणं तओ चित्रकार पुत्रदृ० ।। १५६ ।।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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