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चक्टुंदियाइं पडुच्च कामी, घाणिदियजिभिदिय फासिंदियाई · पडुच्च भोगी। से तेणटेणं गोयमा ! जाव भोगीवि ॥ नेरइयाणं भंते किं कामी भोगी ? एवं चेव जाव थणियकुमारा ॥ पुढवी काइयाणं पुच्छा ? गोयमा ! पुढविकाइया नो कामी भोगी । से केणट्रेणं भंते ! जाव भोगी ? फासिंदियं पडुच्च से तेण?णं जाव भोगी ॥ एवं जाव वणस्सइकाइया ॥ बेइंदिया एवंचेव णवरं
जिभिदिय फासिंदियाई पडुच्च ॥ तेइंदियावि एवंचव गवरं घाणिदिय जिभावार्थ या अजीव भोग हैं ? अहो गौतम ! जीव भी भोग हैं व अनीव भी भोग हैं. अहो भगवन् ! क्या जीव
को भोग हैं या अजीव को भोग हैं ? अहो गौतम ! जीव को भोग हैं परंतु अजीव को भोग नहीं हैं. अहो भगवन् ! भोग के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! भोग के तीन भेद कहे हैं गंध, रस व स्पर्श ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! काम भोग के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! काम भोग के पांच भेद कहे हैं. शब्द, रूप, गंध, रस व स्पर्श ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! क्या जीव कामी हैं या भोगी हैं ? अहो गौतम ! जीव कामी भी है व भोगी भी है. अहो भगवन् ! किम कारन से जीव कामी भी है व
भोगी भी है ? अहो गौतम ! श्रोतेन्द्रिय व चक्षुइन्द्रिय प्रत्ययिक जीव कामी है व घाणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय 10व स्पर्शेन्द्रिय प्रत्यायिक जीव भोगी है. इसलिये जीवों कामी व भोगी दोनों कहाये गये हैं. अहो भगवम् !
। मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 19 अनुवादक-बालब्रह्मचार
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*