SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 925
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ 8 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र अनागार प० परिमाण क० किया नि० निर्विशेष || २ || पूर्ववत् ॥ ३ ॥ पूर्ववत् ॥ ४ ॥ पूर्ववत् ||७||२|| ० वनस्पति काया भ० भगवन् किं० किस का० समय में स० सर्व से अल्पाहारी स० सर्व से बहुत आहारी गो० गौतम पा० प्राहृद् व० वर्षाऋतु में व वनस्पतिकाया स० सर्व से बहुत आहारी त० पीछे नेरइयाणं भंते ! किं सासया असासया एवं जहा जीवा तहा णेरइयावि. जाव मणिया जाव सिय असासया ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ सत्तमसयस्स बीओ उद्देसो सम्मत्तो ७ ! २ ॥ X X + वर्णरसइकाइयाणं भंते ! कं कालं सव्वष्पहारगा वा, सव्वमहारगावा भवंति ? गोयमा ! पाउसवरिसारत्तेसुणं एत्थणं वणस्सइकाइया सव्यमहाहारगा भवंति, अपेक्षा से शाश्वत व भाव की अपेक्षा से अशाश्वत है. ऐसे ही वैमानिक तक चौविस ही दंडक का जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह सातवा शतक का दूसरा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ७ ॥ २ ॥ द्वितीय उद्देशे में जीव के शाश्वत व अशाश्वतपने का कथन किया. अब वनस्पति का अधिकार कहते अहो भगवन् ! किस समय में वनस्पति अधिक आहार करे और किस समय में अल्प आहार ? अहो गौतम ! मावृद व वर्षाऋतु में वनस्पतिकायिक जीवों अधिक आहार करनेवाले होवे. फीर 44- सातत्रा शतकका तीसरा उद्देशा 90-4 ८९५
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy