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शब्दार्थ करे व० बहुत पो० पुद्गलं ५० परिणमे ब• बहुत पो० पुद्गल ऊ० अश्वासे य० बहुत पो० पुद्गल का णी |
निश्वास ले अ. वारंवार आ० आहारले अ० वारंवार परिणमे अ० वारंवार ऊ० ऊश्वासले अ000 वारंवार णी. निश्वासले त. तहां जे. जो० अ० अल्प शरीरी ते. बे अ० थोडा पो. पुद्गल आ० आहार करे अ. थोडा पो० पुद्गल परिणमें अ० थोडे पो. पुद्गल ऊ० उश्वासले अ. थोडे पो० पुद्गल ॐ नी० निश्वासले ॥२॥णे० नारकी भं० भगवन स० सर्व स० समक्रर्म वाले गो. गौतम णो० नहीं इ०
अप्पतराए पोग्गले ऊससंति, अप्पतराए पोग्गले णीससंति । आहच्च आहारोति, आहञ्च परिणामेति, आहच्च ऊससंति, आहच्च णीससंति. से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ, णेरइया णो सव्वे समाहारा, जाव णो सव्वे समुस्सास णीसासा ॥ २ ॥णे
रइयाणं भंते सव्वे समकम्मा ? गोयमा ! णोइणटे समढे, । सेकेणतुणं भंते एवं भावार्थ आहारकरे, वारंवार परिणमावे, वारंवार श्वासलेवे, वारंवार श्वास नीकाले, और जो छोटे शरीर वाले
हैं वे अल्प पुद्गलों का आहार करते हैं, अल्प पुद्गलों परिणमाते हैं, अल्प पुद्गलों का श्वासलेते हैं, अल्प
पुद्गलों को श्वासरूप नीकालते हैं अथवा आंतरा सहित आहार करते हैं, परिणमते हैं, श्वास लेते हैं व ॐ श्वास नीकालते हैं. इसलिये अहो गौतम ! ऐसा कहा है कि सब नारकी एक सरिखे शरीर, आहार व 1 उश्वास, निवासवाले नहीं हैं ॥२॥ अहो भगवन् ! क्या सब नारकी सरीखे कर्म वाले हैं ? अहो ।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
488948 पहिला शतक का दूसरा उद्देशा 98433