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सूत्र |
शब्दार्थ श्वासले गो० गौतम णो नहीं इ० यह अर्थ स० समर्थ से वह के० कैसे भ० भगवन् ए० ऐसा बु० कहा *
जाता है . नारकी णो नहीं स० सर्व स० समाहारी णो नहीं स० सर्व म. समशरीरी णो नहीं स. सर्व स. सरिखा उ० उश्वास णि निश्वासले गो० गौतम ण नारकी दु० दोप्रकार के ५० प्ररूपे म० महा शरीरी अ० अल्प शरीरी त० तहां जे. जो म० महा शरीरी ते वेब बहुत पो० पुद्गल आ० आहार
त्तातंजहा महासरीराय अप्पसरीराय।तत्थणं जेते महासरीराते बहतराए पोग्गले आहारति, बहुतराए पोग्गले परिणामेति, बहुतराए पोग्गले ऊससंति, बहुतराए पोग्गले णीससंति, असिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेति,आभिक्खणं ऊससंति, आभिक्खणं णीससंति,॥
तत्थणं जेते अप्पसरीरा तेण अप्पतराए पोग्गले आहारैति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेति, भावार्थ अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन मसव नारकी सारखे आहार, शरीर, श्वासोश्वास वाले
नहीं हैं ? अहो गौतम ! नारकी दोपकार के कहे हैं. १ बडे शरीर वाले और २ छोटे शरीर वाले. * जो बडे शरीर वाले हैं. वे बहुत दुःखी होते हुवे बहुत पुद्गलों का आहार करे, बहुत पुद्गलों परिणमावे बहुत पुद्गलों को उश्वास रूप से ग्रहण करे, बहुत पुद्गलों को निश्वासरूप से नीकाले और भी वारंवार
है * नारकी की अवधारनीय अवगाहना जघन्य अंगुलका असंख्यात वा भाग उत्कृष्ट ५०० धनुष्य और 18 उत्तर वक्रय जघन्य अंगुल का अमंख्यातवा भाग उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण.
अनुवादक-बालब्रह्मचरिमुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
* प्रकाशके-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी मालाप्रसादजी *