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शब्दार्थ जीव भ० भगवन् स० स्वकृत दु० दुःख वे० वेदता है गो गौतम अ० कितनेक वे० वेदे अ० कितनेक
मणो नहीं वे. वेदे से वह के. कीसतरह भं० भगवन् ए. ऐसा बु. कहा जाता है अ० कितनेक वे० वेदे अ० कितनेक णो० नहीं वेदे गो० गौतम उ०. उदयमें आया वे. बेदे णो नहीं अ.
कडं दुक्खं वेदेइ.? गोयमा ! अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ । सेकेणतुणं भंते एवं वुच्चइ अत्थेगइयं वेदेइ अत्थेगइयं नोवेदेति ? गोयमा ! उदिण्णं वेदति णो अणदिण्णं वेदेति. सेतेणट्रेणं एवं वच्चइ गोयमा। अत्थगइयं वेदेड. अत्थेगडयं णोवदेड एवं चउबीसदंडएणं जाव वेमाणिए ॥ जीवाणं भंते संयं कई दुक्खं वेदेति ? गोयमा ! अत्थेगइया वेदेति, अत्थेगइया णो वेदेति. । से केणटेणं भंते
एवं वुच्चइ ? गोयमा ! उदिण्णं वेदेति. णो अणुदिण्णं वेदेति ॥ एवं जाव वैमाणिया भावार्थ
नेक स्वकृत कर्मवेदे नहीं. अहो भगवन् ! किस कारन से कितनेक स्वकृत कर्मों वेदते हैं और कितनेक नहीं वेदते हैं. अहो गौतम ! उदय में आये हुवे कर्म वेदते हैं और उदय में नहीं आये हुवे कर्म नहीं वेदते हैं और
इसी कारण से ऐसा कहा है कि कितनेक जीव स्वकृत दुःखवेदे और कितनेक जीव संकृत दुःख नहीं वेदे. ऐसे कही पृथक् २ चौविसही दंडक आश्रित जानना. उपर जैसे एक जीव आश्रित कहा है वैसेही अनेक जी
आश्रित मानना. अहो भगवन जीव स्वकृत आयुष्य वेदे ? अहो गौतम ! कितनेक वेदे और कितनेक वे
ॐ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
*प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदर सहायजी मालाप्रसादजी *