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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4343 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
सातदेव सा० सातदेव सहस्र अ० शेष न० नवदेव न० नवदेवशत प० प्रथम जु० दो में स० सात प० सो बी० दूसरे में चो० चौदह स० सहस्र तं० तीसरे में स० सात स० सहस्र न० नव स० सो से० शेष में ॥ ३० ॥ लो० लोकान्तिक मं भगवन् वि० विमान किं० क्या प० प्रतिष्ठित ए० ऐसे ही ने० जानना (वि० विमानों का प० आधार वा० जाडाइ उ० ऊंचाइ सं संठाण बं० ब्रह्मलोक की व० वक्तव्यता ज० जैसे जी० जीवाभिगम में दे० देव उ० उद्देशे में जा० यावत् हं० हां अ० अनेकवार अ० अथवा जुगलंमि सत्तओ सयाणि, बीयम्मि चोहससहस्सा ॥ तइए सत्तसहस्सा, नवचेव सयाणि सेसेसु ॥ १ ॥ ३० ॥ लोगंतिय विमाणाणं भंते! किंपइट्टिया पण्णत्ता ? गोयमा ! वाउपइट्टिया । एवं नेयव्त्रं विमाणाणं पट्ठाणं बाहुल्लुच्चत्तमेव संठाणं, बंभलोय वक्तव्या नेयव्वा, जहा जीवाभिगंम देवदेसए जाव ? हंता गोयमा असई वन्हि वरुण को चौदह देव हैं, एक को एक २ हजार का परिवार होने से चौदह हजार देव का परिवार रहा हुवा है. गर्दतीय और तुषित को सात देव और सात हजार देव का
परिवार, अव्यावाध, अरि
च्च वरिष्ट को नव देव नवसों देवों का परिवार है ॥ ३० ॥ अहो भगवन् ! लोकान्तिक विमान किस आधार से रहे हुवे हैं ? अहो गौतम ! लोकान्तिक विमान वायु प्रतिष्ठित हैं. लोकान्तिक विमान अत्यु-१७ त्तम श्रेष्ठ हैं विमान में रक्त, पीत व शुक्ल ऐसे तीन वर्ण हैं सात सो योजन के ऊंचे कहे हैं, पच्चीस सो
4480 छठा शतक का पंचचा उद्देशा
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