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शब्दार्थ
1-98 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र Bos
पापकर्म इ० यहां से चु० चक्कर पे० पेरलाक में देव सि० होवे गो गौतम अकितनेक दे देवसि. होव अ. कितनेक णो नहीं दे० देव सि० होवे से वह के० कैसे भ० भगवन् जा. यावत इ. यहां चु० चवकर पे० परलोक में अ० कितनेक दे० देव सि० होवे अ० कितनेक णो नहीं दे. देव सि० होवे गो. गौतम जे० जो जी० जीव गा० ग्राम आ० आगर न. नगर नि० निगम रा० राज्यधानि खे. खेडं क० कव्वड मं० मंडप दो द्रोणमुख प० पट्टण आ० आश्रम स० सन्निवेश में अ० अकाम तृष्णा ___ पच्चक्खाय पावकम्मे; इतो चुते पेच्चा देवे सिया ? गोयमा ! अत्थेगइए देवे सिया ।
अत्थेगइए णो देवे सिया । सेकेणटेणं भंते जाव इतो चुते पेच्चा अत्थेगइए देवेसिया, अत्थेगइए णो देवे सिया? गोयमा! जे इमे जीवा गामागर नगर निगम रायहाणि खेड
कव्वड मडंव दोणमुह पट्टणासम सन्निवेसेसु अकामतण्हाए, अकामछुहाए, में क्या देवता होवे ? अहो गौतम ! कितनेक देव होवे और कितनेक देव न हावे. अहो भगवन ? " कारण से कितनेक देव होवे और कितनेक देव नहोवे ! जो जीव ग्राम, आगर, नगर, निगम, राज्यधानी,
कव्वड, मंडप द्रोणमुख, पट्टण. आश्रम, सन्निवेश में अकाम-विना इच्छा से, तृष्णा, क्षुधा, ब्रह्मचर्य, , आतप, दंश मशक, स्नान नहीं करना, स्वेद नहीं पुछना, शरीर का मेल दूर नहीं करना, मल, पंक व परिदाह से अल्प या बहुत समय तक आत्मा को क्लेश पहुंचावे और इस तरह आत्मा को कष्ट देते,
488089 पहिला शतक का पहिला