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________________ * * ra शब्दार्थ 4 १५०परभविक उ० उभय भविक ज्ञान दं दर्शन ए ऐसे॥४१॥ इ०यह भ भविक च० चारित्र प० परभविक । चारित्र उ० उयभावक चारित्र गो गौतम इ०यह भविक चारित्र णो नहीं प परभविक चारित्र णो नहीं उ. उभयभविक चारित्रए ऐसे त तपसंयम॥४२॥ अ० असंवृत अ° अनगार सि सिझे बुबुझे मु०मुक्त होवे प० । एवि णाणे, तदुभयभविएवि णाणेय दसणंपि एवामेव ॥४१॥ इह भविए भंते चरित्ते, परभविए भंते चरित्ते, तदुभय भविए चरित्ते ? गोयमा ! इह भविए चरित्ते, णो पर भविए चरित्ते, णो तदुभय भविए चरित्ते एवं तये, संजमे ॥ ४२ ॥ असंवुडेणं भंते अणगारे सिझति, बुज्झति, मुच्चति, परिणिव्वाति, सव्वदुक्खाणमंतंकरेंति ? गोयमा ! इस भविक ज्ञान होता है, परभधिक ज्ञान होता है, अथवा दोनों प्रकार का ज्ञान होता है ? अहो । गौतम ! इस भविक, परभषिक व तदुभयभविक ज्ञान होता है ऐसे ही दर्शनका जानना. ॥ ४१ ॥a अहो भगवन्! इस भवका चारित्र, परभवका चारित्र, व दोनों भवका चारित्र? अहो गौतम! इस भव संबंधिही चारित्र है परंतु परभविक व उभय भविक चारित्र नहीं है ऐसेही तप व संयम का जानना.॥४२॥ अहो भगवन् 6 502 असंवृत्त आश्रवद्धार को नहीं रुंधने वाला अणगार क्या सिझे, बुझे, कर्म से मुक्त होवे निर्वाणको प्राप्त होवे । १ १ जो ज्ञान यहां पर शीखने में आया होवे और परभव में साथ न जावे. २ इस भवमे शीखने मे आया होवे और परभवमें साथ जावे ३ इस भवमे शीखने में आया होवे वह परभव में व परतरभव में अनुवर्तेसो पहिला शतक का 88-89 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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