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________________ शब्दार्थ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 81 अ० अन्त लु० रूक्ष ए. ऐसे बा० बादर परिणत पो० पुट्ठल स० शब्द प० परिणत भं० भगवन् पो. पुद्गल का काल. से क० कितना हो. होवे शेष पूर्ववत् ॥ ५ ॥ ५० परमाणु पो० पुद्गल का भं• भगवन् । अं० आंतरा का• काल से के० कितना हो० होवे गो. गौतम ज० जघन्य ए० एक स० समय उ० भ७०४ उत्कृष्ट अ० असंख्यात काल दु० द्विप्रदेशी भ० भगवन् खं० स्कंध का एक ऐसे जा. यावत् १० अनंत जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं, असद्दपरिणए जहा एक गुणकालए ॥ ५ ॥ परमाणु पोग्गलस्सणं भंते ! अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणेणं एगंसमयं उक्कोसेणं असंखेज्जकालं ॥ दुपएसियरसणं भंते ! खंधस्स अंतरं कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं एगं समयं उक्कोसेणं एक समय उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवा भाग तक रहते हैं अशब्दपरिणत पुगलोंको एक गुन काला जैसे कहना।।५॥ अहो भगवन् ! परमाणु पुद्गल का अंतर कितनेकाल का कहा? अहो गौतम! जघन्य एक समय का उत्कृष्ट असंख्यात काल का. द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध का जघन्य एक १ एक परमाणु पुद्गल जितने समय में अन्य पुद्गलों की साथ भीलकर फीर उस से विच्छिन्न बनकर एक ही परमाणु पुद्गल बन जावे उतने समय को अंतर कहते हैं. *प्रकाशक-राजीवहादुर लाला मुखदेवसहायनी चालाप्रसादजी * भावार्थ |
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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