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शब्दार्थ
नि० कंपन रहित ज० जघन्य ए० एक स० समय उ० उत्कृष्ट अ० असंख्यात काल एक एक गु० गुन काला भ० भगवन् पो० पुद्गल का काल से के० कितना भ० होवे गो० गौतम ज० जघन्य ए० एक स० समय उ० उत्कृष्ट अ० असंख्यात काल ए० ऐसे व० वर्ण गगंध र० रस फा० स्पर्श जा. यावत्
गाढे एग गुणकालएणं भंते ! पोग्गले कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! है जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं असंखेनं कालं एवं जाव अणंत गुणकालए; एवं
वण्ण गंधरस फास जाव अणंत लुक्खे, एवं सुहुम परिणए पोग्गले, एवं बादर
परिणए पोग्गले सद्दपरिणएणं भंते ! पोग्गले कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! भावार्थ
की व्याख्या नहीं होती है. एक आकाश प्रदेश पर रहनेवाला परमाणु पुद्गल कम्पन रहित जघन्य एक में समय उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रहता है ऐसे ही असंख्यात प्रदेशावगाढ परमाणु पुद्गल का जानना.. अहो भगवन् ! एक गुन काला पुद्गल जघन्य कितना कालतक रहता है ? अहो गौतम ! एक गुन काला पुद्गल जघन्य एक समय उत्कृष्ट असंख्यात कालतक रहता है जैसे एक गुन काला का कहा वैसे ही अनंत गुन काला तक जानना. और ऐसे ही शेष चार वर्ण, दो गंध, पांच रस व आठ स्पर्श में
अनंत प्रदेशी रूक्ष पुद्गल तक का जानना. ऐसे ही मूक्ष्म परिणत पुद्गल व बादर परिणत पुद्गल का जानना. 15 अहो भगवन् ! शब्द से परिणमे हुए पुद्गलों कितने काल तक शब्दपने रहते हैं ? अहो गौतम ! जघन्य
28 पंचमांग विवाह पण्णात्ति ( भगवती) सूत्र
4:488 पांचवा शतक का सातवा उद्दशा
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