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शब्दार्थ । ऐसे म. मनुष्य को ण. विशेष आ० आभोग निवर्तितपने ज० जघन्य अं० अंतर्मुहूर्त उ० उत्कृष्ट
अ० अठम भक्त सो• श्रोतेन्द्रिय च०" चक्षुइन्द्रिय घा० घाणेन्द्रिय जि० जिव्हेन्द्रिय फा० स्पर्शेन्द्रियपने ४० बेबेयात्रा भ० वारंवार १० परिणमें से० शेष त० तैसे जा. यावत च० चलित कर्म णि निर्जरे॥३४ या वाणव्यंतर को ठि० स्थिति णा. नानाप्रकारकी. अ० निरवशेष ज. जैसे णा० नाग कमार को॥३ ए. ऐसा जो० ज्योतिषी को ण विशेष उ० उश्वास ज. जघन्य मु० मुहूर्त पृथक् उ० उत्कृष्ट मु० मुहूर्त है। ___ महत्तं, उक्कोसेणं अट्रमभत्तस्स सोइंदिय चक्खंदिय घाणिदिय जिभिदिय फासिदिय है
बेमायाए भुजो भुजो परिणमंति सेसं तहेव जाव चलियं कम्मणिज्जरेंति ॥ ३४ ॥ है
वाणमंतराणं टिईए णाणत्तं । अवसेसं जहा णाग कुमाराणं ॥३५॥ एवं जोइसियाणं । मनुष्य को जानना. परंतु आभोग नितित आहार की इच्छा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट अठम भक्त सोई तीन दिन में होवे देव कुरु उत्तर कुरु क्षेत्र के मनुष्य आश्रित. दोनों को आहार के पुद्गल श्रोतेन्द्रिय चाइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिव्हेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रियपने व बे मात्रा से परिणमते हैं. अन्य चलित कर्म की निर्जरा करे वहांतक सब पहिले जैसे कहना ॥ ३४॥ वाणव्यंतर देवता की स्थिति जघन्य दश
हजार वर्ष की उत्कृष्ट एक पल्योपम की अन्य सब नाग कुमार जैसे कहना. ॥ ३५ ॥ ज्योतिषी देवता 10 की स्थिति जघन्य एक पल्यापम का आठवा भाग उत्कृष्ट एक पल्योपम व एकलाख वर्ष आधिक जानना. और
33 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र -8882
पहिला शतक का पीहला उद्देशा894880
जावाथे