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________________ शब्दार्था भगवन्त म० महावीर की जा० यावत् प० पर्युपासना करूं इ० ये ए० ऐसे वा० प्रश्न पु० पूछू ति ऐसा करके ए० ऐसा सं० विचार करके उ० उपस्थित होकर जे० जहां स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर ( जा० यावत् प० पर्युपामना करते हैं. गो० गौतम स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर ए०ऐसे ब०बोले से अथ णू० शंकादर्शी त० तुझे गो० गौतम झा० ध्यान में व० रहते इः यह ए० ऐसा अ० अध्यवसाय जा० यावत् ने० जहां म० मेरी अं० समीप ते ० वहां ह० शीघ्र आ० आया से० अथ णू० शंकादर्शी अ वागरणाई पुच्छरसामित्तिकद्दु । एवं संपेहेइ २ ता उट्ठाए उट्ठेइ २ त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे जाव पज्जुवासइ । गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी सेणूणं तव गोयमा ! झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे अन्भत्थिए जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेत्र हल्वमागए, से णूणं गोयमा ! अट्ठे समट्ठे ? हंता अत्थि तं गच्छाहिणं गोयमा ! एए वेत्र देवा इमाई एयारूबाई वागरणाई वागरेर्हिति । तएणं ( गौतम स्वामी आये. श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामीने कहा कि अहो गौतम ! तुझे ध्यान करते हुवे ऐसा अध्यवसाय यावत् संकल्प हुवा कि ये महर्द्धिक देवों कहां से व किसलिये मेरी पास आये हुवे हैं ? और इसका नि{र्णय करने को तू मेरी पास आया हुवा है यह क्या सत्य है ? हां भगवन् ! यह सत्य है. तब है? गौतम ! तू इन देवों की पास जा और तुझे ये देवों उक्त प्रश्नों का उत्तर देवेंगे. इस तरह भगवन्त की सूत्र भावार्थ 486+ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र - 44 पांचवा शतकका चौथा उद्देशा +4 ६५३
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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