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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
{ बांधते हैं गो० गौतम स० सात प्रकार से आ० आठ प्रकार से बं० बांधते हैं ए० ऐसे जा० यावत् वे ० वैमानिक ॥ ५ ॥ जी० जीव मं० भगवन् ह० हसते हुवें पूर्ववत् ॥ ६ ॥ छ० छद्मस्थ मं० भगवन् नि
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बंधगात्रा, ॥ णेरइयाणं भंते ! हसमाणा उस्सुयमाणा कतिकम्मप्पगडीओ बंधंति ? गोमा ! सव्वेव ताव होज सत्ताविह बंधगा, अहवा सत्तविह बंधगावि, अट्ठविह बंधगाव, अहवा सत्तविह बंधगाय अट्ठविह बंधगाय, एवं पोहत्तिएहिं जीवेगिंदिय वज्जो तियभंगो, ॥ ६ ॥ छउमत्थेणं भंते ! मणूसे निदाएजवा, पयलाएज्जवा ? हंता आश्रित पृच्छा करते हैं. अहो भगवन् ! बहुत जीव अहो गौतम ! आयुष्य रहित सात का बंध करे व बहुत नारकी हसते उत्सुक होते कितनी कर्म प्रकृतिविना सात का भी बंध करते हैं और आयुष्य
( सहित आठ का बंध करते हैं. वैसे ही यहां कहना १ सब सात का बंध करनेवाले होते हैं २ सात का बंध करनेवाले अथवा आठका बंध करनेवाले ३ सात और आठ का बंध करनेवाले. ऐसे तीन भांगे एकेन्द्रिय { के पांच दंडक छोडकर शेष १९ दंडक में पाते हैं ॥ ६ ॥ अहो भगवन् ! छद्मस्थ जीव सुख से शयन
चौविस दंडक का जानना ॥ ८ ॥ हसते व उत्सुक होते कितनी प्रकृतियों आयुष्य सहित आठ का बंध करे. यों का बंध करे ? अहो गौतम !
अब बहुत जीव का बंध करे ? अहो भगवन् ! सब जीव आयुष्य
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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