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शब्दाथ
छ० छ अस्थ म० मनुष्य ह. हसे उ० उत्सुक होये ६० हां ह० हसे उ० उत्सुक होवे ज. जैसे छ० छमस्थ म. मनुष्य त० तैसे के ० केवली णो नहीं इ० यह अर्थ स० योग्य से० यह के० किसलिये गो० गौतम ज. निसलिये जी. जीव च. चारिप मो० मोहनीय क० कर्म के उ. उदय मे ह. हसते हैं उ० उत्सुक होते हैं से वह के. केवली को न नहीं है ते. इसलिये जा० यावत् नो० नहीं त० तैसे के. केवली . छउमत्थेणं भंते! मणसे हसेजवा, उस्सुयाएजवा? हंता हसेजवा उस्सुयाएजवा जहाणं
भंते ! छउमत्थे मणूसे हसे नवा उस्सुआएजधा, तहाणं केवलीवि हसेजवा, उस्सु. याएज्जया ? गोयमा ! जो इण? सम8 । से केण?णं, जाव नोणं तहा केवली । हसेजवा उस्सुआएजवा ? गोयमा ! जणं जीवा परित्तमोहणिनकम्मरस उदएणं
हसंतिया उस्सुयायंतिया , सेणं केवलिस्स नस्थि, से तेणटेणं जाव नोणं तहा केवली दूर के, नजीक के सब शब्दों जान क. देख सकते हैं.॥ २ ॥ अहो भगान् ! छमस्थ मनुष्य क्या हसते हैं। व उत्सुक होते हैं ? हां गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य हसते हैं व उत्सुक होते हैं. अहो भगवन् ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य हसते हैं व उत्सुक होते हैं वैसे ही क्या केवली हसते हैं व उत्सुक होते हैं ? अहो गौतम !
यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो भगवन् ! किस कारन से केवली नहीं हसते हैं यावत् उत्सुक नहीं होते हैं ? *बो गौतम ! चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से जीव हसते हैं व उत्सुक होते हैं वह केवली को नहीं है।
* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी gk
*प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ