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शब्दार्थ
488 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 8888
अधोपने सु० सुखपने णो० नहीं दु. दुःखपने भु० वारंवार प. परिणमते हैं ॥ १८ ॥ अ० अमुर कुमार भ० भगवन् पु. पूर्वाहारी पो० पुद्गल प० परिणमें अ. अमुरकुमार के अ: अभिलाप से ज. जैसे 100 नारकी जा. यावत् च० चलित क० कर्म णि निर्जरते हैं ॥ १९ ॥ ना. नागकुमार की भं० भगवन् के० कितना काल की ठि० स्थिति गो. गौतम ज० जघन्य द० दशवर्ष स० सहस्र उ० उत्कृष्ट दे देशऊण,
अभिज्झियत्ताए, उद्वत्ताए णो अहत्ताए सुहत्ताए णोदुहत्ताए भुजो भुजो परिणमंति ॥ १८ ॥ असुरकुमाराणं भंते ! पुवाहारिया पोग्गला परिणया ? असुर कमाराभिलावेणं जहा रइयाणं जाव चलियं कम्मं णिजरेति ॥ १९ ॥णाग कुमाराणं भंते केवइयं कालं ठिई प. ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई
उक्कोसेणं देसूणाई दो पलिओवमाई ॥ २० ॥ नागकुमाराणं भंते केवइय काल इच्छापने, ऊर्ध्वपने, अधोपने नहीं, व सुखपने वारंवार परिणमते हैं परंतु दुःखपने नहीं परिणमते हैं ॥१८॥ अहो भगवन् ! अमुरकुमार को पूर्व के ग्रहण किये हुवे पुद्गल परिणमें ? वे चलित कर्म की निर्जरा करते हैं वहां तक असुरकुमारका सब आधिकार नारकीका अधिकार जैसे कहना ॥१९॥ अहो भगवन् !
नागकुमार जाति के देवता की कितने काल की स्थिति कही? अहो गौतम! नाग कुमार जाति के कदेवता की जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट देश ऊना दो पल्योपम की स्थिति कही ॥ २० ॥ अहो भगवन!
पहिला शतकका पहिला उद्देशा 88488