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अब्दाथा
१.१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी 89
30 उत्कृष्ट सा० सातिरेक वा० सहस्र वर्ष में आ० आहार की इच्छा स० उत्पन्न होवे ॥ १७ अ० असुर कुमार किं. क्या आ० आहार आ० ग्रहण करते हैं गो. गौतम द० द्रव्य से अ. अनंत प० प्रदेश द० द्रव्य खे० क्षेत्र का० काल भा० भाव से प० पनवणा में से० शेष ज० जैसे णे नारकी को जा० यावत् ते० उनको पो० पुद्गल की कीसतरह भु. वारंवार प० परिणमते हैं गो० गौतम सो० श्रोतेन्द्रियपने सु०१ सुरूपपने सु० अच्छावर्णपने इ० इष्टपने इ० इच्छापने अ० अच्छी वांच्छापने उ० प्रधानपने णो नहीं अ०
साइरेगस्स वाससहस्सस्स आहारट्टे समुप्पजइ. ॥ १७ ॥ असुरकुमाराणं भंते किं आहार माहारेति ? गोयमा ! दव्वओ अणंतपएसियाई दवाई खेत्त काल भाव पण्णवागमेणं सेस जहा णेरइयाणं जाव तेणं तेसिं पोग्गला कीसत्ता भज्जो भजो
परिणमंति ? गोयमा ! सोइंदियत्ताए, सुरूवत्ताए, सुवण्यत्ताए, इट्टत्ताए, इच्छियत्ताए, वर्ष से कुच्छ अधिक समय में उत्पन्न होवे ॥ १७॥ अहो भगवन् ! असुरकुमार जाति के देवता क्या आहार करे ? अहो गौतम ! द्रव्य से अनंत प्रदेशी द्रव्य का आहार करे, क्षेत्र से, काल से. भाव से आहार करने की विधि जैसी पन्नवणा सूत्र में कही है वैमी यहां जानना और शेष सब अधिकार नारकी का कहा वैसे ही यहां कहना. और उनको पुतुल की तरह परिणमते हैं ? उन को पुल श्रोतन्द्रियपने. सुरूप, सर्वोत्कृष्ट वर्ण, इष्टपने, ईपिपतपने-पड़ऋतु में मखदायीपना से. वारंवार एमाही बना रहुं ऐसी
* प्रकाशक-राजावहादुर लामा वनहाय ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ