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शब्दार्थ ग्रहण करने को है . हां प० समर्थ से० वह के० कैसे जा. यावत् गे० ग्रहण करने को गो गौतम पो :
पुद्गल खि० फेंका हुवा पु० पहिले सि० शीघ्र सी० शीघ्रगति भ० होकर त० पीछे मं० मंदगीत भ० होती है दे. देव म० महदिक पु० पहिले प० पीछे सी० शीघ्र गति तु. त्वरागति से वह ते• इसलिये जा. यावत् प० समर्थ गे० ग्रहण करने को ॥ ३४ ॥ ज० यदि भं० भगवन् दे. देव म० महर्दिक जा० • हंता पभू । से केणटेणं भंते ! जाव गेण्हित्तए ? गोयमा ! पोग्गलेणं खिवित्ते ।
समाणे पुवामेव सिग्घगई भवित्ता, तओ पच्छा मंदगई भवइ, देवेणं महिड्डीए पुट्विंपि पच्छावि सीहे सीहगई चेव, तुरिए तुरियगई चेच, से तेण?णं जाव पभू गेण्हि
त्तए ॥ ३४ ॥ जइणं भंते देवे महिड्डीए जाव अणुपरियटित्ताणं गेण्हित्तए, कम्हाणं स्वामी को वंदना नमस्कार करके एसा बोले कि अहो भगवन् ! महर्दिक महा द्युतिवंत यावत् महा नुभागवाले देव पहिले पुद्गल फेंक कर उस की पीछे जाकर पीछा लेने को क्या समर्थ हैं ? हां गौतम !. वे समर्थ हैं. अहो भगवन् : किस तरह पीछे जाकर पुद्गल पीछे लेने को समर्थ हैं ? अहो गौतम !
फेंके हुवे पुद्गलोंकी पहिले शीघ्रगति होती है और फीर मंदगति होजाती है. और महद्धिक देव की पहिले " और पीछे शीघू होवे तो शीघ्र और त्वरित होवे तो त्वरित ऐसी एकसरीखी गति. होती है. इस से मह
दिक देव फेंके हुवे पुद्गलों को ग्रहण करने को समर्थ हैं ॥ ३४ ॥ जब महर्दिक देव फेंके हुरे पुद्गलों को
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी.
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ