________________
शब्दार्थ विशेष उत्पन्न हुवा है कुतुहल उ० स्थान से उ० उठे उ० स्थान मे उ उठकर जे. जहां स० श्रमण भ०१
भगवान् म. महावीर ते. तहां उ० आये उ० आकर स: श्रमण भ. भगवान म० महावीर को तिक तीनवक्त आ आदान प०प्रदक्षिणा क०की क०करके वं०वंदे न० नमस्कारकिये बं० बंदनकर ण. नमस्कार करण. नीचा आपनसे णा० रनहीं सुश्रवण करने की इच्छावाले ण नमस्कार करते अ० मन्मुख वि विनय से पं० हस्त जोडकर प० सेवा करते ए० ऐसा व• बोले ॥ ४ ॥ से वह णू निश्चय भं० भगवन् ?
कोउहल्ले, । उट्ठाएउट्ठति, उट्ठाएउठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेवउवागच्छइ; उवागच्छित्ता समणं. भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं, पयाहिणं करेइ, करेइत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासणे णातिदूरे, सुस्सूसमाणे णमंस
माणे आभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे एवं वयासी ॥ ४ ॥ से णूणंभावार्थ E से उपस्थित हुवे. उपस्थित होकर जहां श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी विराजते थे वहां आये. आकर
श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीको तीन वार प्रदक्षिणा कर के वांदे नमस्कार किया. वंदणा नमस्कार कर
के अतिदूर व अति नजीक भी नहीं वैसे भगवंत के वचन श्रवण करने की अत्यंत अभिलाषा रखते हुवे, ॐनमस्कार करते हुवे, भगवन्त सन्मुख मुख कर के विनय पूर्वक हस्तद्वय जोडकर सेवा करते हुवे ऐसा बोले
गौतम स्वामीने ऐसा प्रश्नकिया॥४॥अहो भगवन् ! जो कर्म अपनी स्थितिते चलनेलगे, भोग सन्मुख हुवे
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 2280
880%> पहिला शतक का पहिला उद्देशा