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रहेहुवे सं० संयम त तप से अ० आत्मा को भा. भावते वि. विचरते हैं. ॥३॥ त० तब गो० गौतम कोई शब्दार्थ
जा० उत्पन्न है स ० श्रद्धा जा० उत्पन्न है सं० संशय जा० उत्पन्न है को० कुतुहल उ० उत्पन्न हुइ है। स० श्रद्धा उ० उत्पन्न संशय उ० उत्पन्न कुतुहल स. विशेष उत्पन्न है श्रद्धा सं० विशेष उत्पन्न है संशय सं० विशेष उत्पन्न है कुतुहल स० विशेष उत्पन्न हुइ है श्रद्धा सं० विशेष उत्पन्न हुवा है संशय सं० है वगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ३ ॥ तएणं से भगवं गोयमे जा। यसड्डे, जायसंसये, जायकोउहले; उप्पण्णसड्डे, उप्पण्णसंसए, उप्पण्णकोउहल्ले; सं
जायसड्डे, संजाय संसये, संजाय कोउहल्ले, समुप्पन्नसड्डे, समुप्पन्नसंसये, समुप्पन्न । बहुत दूर नहीं वैसेही नजीक भी नहीं ऐसे ऊर्ध्वजानु न अधोशिर ( उत्कर आसन ) कर बैठेहवे धर्म ध्यान व शुक्लध्यान करते और संयम व तपसे आत्मा को भावते हुवे विचर रहें ॥ ३ ॥. उस समय श्री गौतम स्वामी को तत्त्वार्थ जानने की श्रद्धा उत्पन्न हुई। क्योंकी "चलमाणे चलिए" इस में वर्तमानकाल व अतीतकाल एक सरिखा कहा ऐसा वाक्य किस न्यायसे कहा? ऐसा संशय उत्पन्न हुवा, किस प्रकार से
इस का अर्थ प्रकाशेंगे ऐसा कुतुहल उत्पन्न हुवा, तत्काल श्रद्धा उत्पन्न हुई, तत्काल संदेह उत्पन्न हुवा में तत्काल कुतुहल उत्पन्न हुवा, विशेष श्रद्धा हुई, विशेष संशय उत्पन्न हुवा, व विशेष कुतुहल उत्पन्न हुवा
है जिस को ऐसे व समुत्पन्न श्रद्धा, समुत्पन्न संशय व समुत्पन्न कुतुहल वाले श्री गौतमस्वामी स्वस्थानक
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *