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________________ ०७ शब्दार्थ * {अव्यावाध अ० पुनरागमन रहित सि० सिद्धगति ना० नाम ठा० स्थान को सं० प्राप्त करने की का { इच्छावाले जा० यावत् स० समवसरण प० परिषदा णि निर्गता ध० धर्म क० कहा प० परिषदा प्रति [गता || २ || ते उस का काल ते ० उस स० समय में स० श्रमण भ० भगवान् म० महावीर के जे० ज्येष्ट अं० अंतेवासी इं० इन्द्रभूति ना० नाम का अ० अनगार गो० गौतम गोत्रीय स० सात हाथ के ऊंचे (स० समचतुस्र टान सं० सहित व वज्र ऋषभ नाराच संघयणी क० सुवर्ण पु० कसोटी णि० घसाहुवा सिद्धगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामे जाव समोसरणं । परिसाणिग्गया । धम्मोकहिओ, परिसा पडिगया ॥ २ ॥ तेणं कालेणं, तेणं समएणं; समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूती णामं अणगारे गोयमगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंस संठाण संठिए, वज्जरिसह नाराय संघयणे कणगपुलगणिघसपम्हगोरे, उग्गतवे, दित्त गति को प्राप्त करने की इच्छावाले श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने राजग्रह नगर के गुणशील नामक { बगीचे में बारहे प्रकार की परिषदा की समक्ष धर्मोपदेश दिया. जीव है, अजीव है लोक है अलोक है { यावत् मोक्ष है. परिषदा के देव, देवी, मनुष्य वगैरह सब भगवंत को वांदकर स्वस्थान गये ||२|| उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत का जेष्ट अंतेवासी इन्द्रभूति नामक अणगार, गौतम गोत्रीय, सात हाथ १ चार देव, चार देवी व चतुर्विध संघ. भावार्थ 88 अनुवादक वालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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