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सार्थ 41
अनुवादक-बालअपचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
2 . ईशान देवेन्द्र दे० देवराजा जे. जहां उ० जाकर क० करकेतल प०इकठेकर ददशनख मि. शिर्ष से
आ०. आवर्तन म..मस्तक से अं० अंजलि कारकै ज० जयविजय व० बधाकर एक ऐमा व. बोले दे देवानुपिय० बलिचंचा रा० राज्यधानी में व. रहने वाले ब. बहुत अ० असुर कुमार दे० देव दे० देवी दे. देवानुपिय का काल को प्राप्त जा. जानकर ई. ईशान देवलोक में इं० इंद्रपने उ० उत्पमई
पा देखकर आ० शीघ्रअसुरक्त जा. यावत् ए० एकान्त में ए०रखकर जा० यावतू जा. जिसदिशि से 'आकड्ड विकड्ढेि कीरमाणं पासंति, पासइत्ता आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा जेणेव ईसाणे
देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छंति उवागच्छइत्ता, करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिंक? जएणं विजएणं वहावेंति, वडावइत्ता एवं क्यासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवाय देवीओय
देवाणुप्पिए कालगए जाणेत्ता, ईसाणेयकप्पे इंदत्ताए उववण्णे पासेत्ता, आसुरुत्ता तामली तापस के शरीर की हीलना, निन्दा, खिसना करते और उन के शरीर को मार्ग में घसीटते हुवे देखा. इस से बहुत क्रोधित बनकर ईशानेन्द्र की पास आये और हस्तद्वय से मस्तक को आवर्तना करके
जय विजय शब्द से वधाये. वधाकर ऐसा बोले कि अहो देवानुपिय ! आप को काल प्राप्त हुवे व ॐईशानेन्द्र बने हवे जानकर बलिचंचा राज्यधानी में रहनेवाले देव देवियोंने आपका मृतक शरीर की हि
प्राधा-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावा