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भावार्थ
Joge को नमस्कार होवो अयान श्री कपभदव जीने ग्रावास में अपनी ज्येष्टा पुत्री ब्राह्मी की भठारह प्रकार पूल की लिपि बतलाई. उम लिपि से शास्त्र लिखे गये इस लिये उम का कथन करनेवाले श्रीपभदेव
स्वामी को शाख के उपदेश देनेवाले श्री सुधर्मास्वामी नमस्कार करते हैं. इस तरह नमस्कार किये पीछे पांचवा अंग श्री व्याख्यापज्ञप्ति का आधिकार कहते हैं. इस में जीवाजीव की विविध प्रकार की प्ररूपना की है, गौतमादिक के विविध प्रकार के प्रश्नों व उनके उत्तर दिये हैं. इस में एक मरिखा संबंध होनेपरभी पुष्पावकीर्ण की तरह भिन्न २ प्रकार का अधिकार है. इस का अपर नाम भगवती है अर्थात भगवंत की वाणी सर्वमान्य होने से भगवती कहाती है. इस के १३८ शतक हैं, उनके उटेशे १०००० प्रमाण हैं.३६ हजार प्रश्न हैं।
और पद २८८००० हैं. प्रथम शतक श्री भगवन्तने राजग्रही नगरी में कहा. इस के दश उद्देशे कहे हैं. प्रत्येक उद्देशे में भिन्न २ प्रश्न पूछे हैं सो बताते हैं. अब उद्देशके नाम बताते हैं. १ चलण-चलमाणे
पंचमाङ्ग विवाह पण्णति ( भगवती) सूत्र -
gr* <.803>पहिला शतकका पहिला उद्देशा 985205
१ कितनक 'नमो बभीए लिवीए' इनका ब्राह्मी लिपि को नमस्कार होबो एसा अर्थ करके अक्षर स्थापना निक्षेप सिद्ध करते हैं, परंतु जैसे अनुयोग द्वार में पाथा का जान पुरुष पाथा कहाता है वैसे ही लिपिका शिखानेवाला पुरुप लिपिक कहा जा सकता है. इसलिये यहांपर मृत्रकारने अक्षर स्थापना रूप लिपि को नमस्कार नहीं करते हुवे लिपि बतानेवाले श्री ऋपभदेव स्वामी को नमस्कार किया है. और भी
वीर निर्वाण पीछे ९८० वर्ष में पुस्तकारूद ज्ञान हुवा इस मे लिपि को नमस्कार करना नहीं ॐ संभवता है.